बकाया नहीं मिला तो “स्‍टेच्‍यू ऑफ यूनिटी” के उद्घाटन पर नर्मदा में डूब के मर जाऊंगा

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गुजरात के सनखेडा में सरदार चीनी मिल के परिसर में सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति लंबी-लंबी घासों से घिरी है। 11 साल पहले को-ऑपरेटिव के माध्यम से चीनी मिल चलाया जाता था। लेकिन इसके बोर्ड मेंबर के द्वारा की गई आर्थिक गड़बड़ी की वजह से यह बंद हो गया।
इसके बाद से चार जिले छोटा उदेपुर, पंचमहल, वडोदरा और नर्मदा के 1500 किसान, जिन्होंने 2.62 लाख टन गन्ना चीनी मिल को बेचा था, आज भी अपने बकाए 12 करोड़ रुपये मिलने का इंतजार कर रहे हैं।
अब प्रभावित किसानों ने सरदार पटेल को समर्पित स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के अनावरण के मौके पर विरोध जताने की योजना बनाई है ताकि सरकार से उन्हें राहत मिल सके।
उन्होंने धमकी दी है कि यदि उनका बकाया पैसा नहीं मिला तो 31 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 182 मीटर ऊंची मूर्ति के अनावरण के मौके पर वे नर्मदा में कूद कर अपनी जान दे देंगे।
कौशिक पटेल चीनी मिल को 389.73 टन गन्ना बेचे थे। लेकिन आज तक उन्हें बकाया राशि 2.18 लाख नहीं मिला है। वे कहते हैं, “हमारा स्टेच्यू ऑफ यूनिटी फैक्ट्री में स्थित है, जो कि सरदार वल्लभभाई पटेल को समर्पित है।
सरकार की उदासीनता की वजह से किसानों को आर्थिक समस्या हो रही है। ऐसे में हमारे लिए नए स्टेच्यू का कोई मतलब नहीं है। हम पिछले 11 सालों से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अभी तरह सब व्यर्थ रहा है।”
छोटा उदेपुर कलेक्टर सुजल मयात्रा के अनुसार, यह मामला 2008 का है, जब फंड में गड़बडि़यों और कुप्रबंधन की वजह से सरदार चीनी मिल बंद हो गया था। वे कहते हैं, “मामला सामने आने पर ऑडिट करवाया गया था, जिसमें को-ऑपरेटिव बोर्ड के सदस्यों की गलतियां उजागर हुई थी।
इसके बाद बोर्ड को रद कर दिया गया था और मिल बंद हो गया था। मिल के उपर 10 करोड़ का कर्ज है और इसे खत्म करेन के लिए नीलामी का आयोजन किया गया था। मुंबई स्थित एक कंपनी सीताराम शुगर ने वर्ष 2011 में 36 करोड़ में मिल को खरीदा था।”
को-ऑपरेटिव बोर्ड के 15 सदस्यों द्वारा मिल का प्रबंधन किया जा रहा था, जिन्हें सरकार द्वारा नामित किया गया था।
2008 से 2011 के बीच, जब मिल की नीलामी नहीं हुई थी, किसानों ने जिला कलेक्टर के साथ-साथ कृषि सहयोग और किसान कल्याण विभाग, चीनी के निदेशक सहित अन्य सरकारी निकायों के समक्ष कई प्रस्ताव प्रस्तुत पेश किए थे।
यहां तक कि इस मामले को उन्होंने 2009 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली एक रिड्रेसल सिस्टम में भी ले गए।
जब मिल पर हथौड़ा चलने की बात आयी, किसानों को लगा कि अब प्रतीक्षा की घड़ी समाप्त हुई। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गुजरात हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर दी गई, जो अभी भी विचाराधीन है।
कौशिक पटेल ने कहा, “जब हाईकोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और फैक्ट्री की नीलामी हुई, 326 किसानों ने बढ़े हुए पैसों में से अपना हिस्सा मांगा। लेकिन लड़ाई अभी जारी है। हम अभी तक अपने बकाए राशि का इंतजार कर रहे हैं।”
को-ऑपरेटिव मिल के पूर्व एक्सक्यूटिव डॉयरेक्टर कंचन पटेल, जो भाजपा के सदस्य और बोदेली के अलीखेरव गांव के सरपंच हैं, के अनुसार, फैक्ट्री एक महत्वकांक्षी परियोजना थी।
वे कहते हैं, “शुरूआत में व्यवसाय अच्छा चला और मुनाफा भी हुआ। लेकिन कुछ फैसलों की वजह से मामला उल्टा पड़ गया।”
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