देश की प्रथम किन्नर महापौर के जिले की कहानी ,1998 में जिला बने कटनी की धरोहर

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“कटनी जिला मध्य प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी भाग में स्थित है। यह जबलपुर संभाग का उत्तरी जिला है। पहले कटनी जबलपुर जिले की एक तहसील थी जिसे 25 मई 1998 में जबलपुर जिले से अलग करते हुए कटनी को जिला बनाने की आधिकारिक घोषणा की गई। क्षेत्र के आधार पर मुड़वारा जबलपुर की सबसे बड़ी तहसील थी, जो 1998 में कटनी जिले में शामिल कर दी गई।”
‘चूना पत्थर के शहर’ के नाम से लोकप्रिय उत्तरी मध्य प्रदेश का कटनी 4950 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह कटनी जिला का मुख्यालय है। विजयराघवगढ़, ढीमरखेड़ा, बहोरीबंद, बिलहरी, मुड़वारा और करोंदी यहां के लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं। मुडवारा, कटनी, छोटी महानदी और उमराड़ यहां से बहने वाली प्रमुख नदियां हैं। कटनी का स्लिमनाबाद गांव संगमरमर के पत्थरों के लिए प्रसिद्ध है।
कटनी नगर का नामकरण कटनी नदी के नाम पर हुआ है। इस नदी पर नगर पश्चिम में 2किमी दूर कटाए घाट है। वास्तव में यह ‘कटाव घाट’ है, उस कटाव पहाड़ी का जो बहोरीबंद में है। घाट का आशय चढ़ाव है। डॉ॰ शिवप्रसाद सिंह के उपन्यास ‘नीला चाँद’ में इस कटाव घाट के रास्ते से होकर युद्ध के लिए जाने की सलाह काशी नरेश को दी जाती है। ‘मध्यप्रदेश की बारडोली ‘ कटनी को यह गौरवशाली उपाधि इसलिए मिली कि नगर एवं पचासों गाँव के लोगों ने देश की आज़ादी की लड़ाई में बापू का साथ दिया था।
प्रदेश में सबसे बढ़कर संख्या बल जेल जाने वालों का यहाँ के लोगों का था। माता कस्तूरबा से मुलाकात करने यहाँ के रेल्वे प्लेटफार्म पर उनके बड़े पुत्र यहाँ आए थे। साहित्य में उल्लेखनीय है विजयराघवगढ़ रियासत के ठाकुर जगमोहन सिंह के काव्य-उपन्यास ‘श्यामा स्वप्न’ की भारतेंदुकालीन परंपरा। आगे गाँधीवादी कवि राममनोहर बृजपुरिया सम्राट के बाद कथा कविता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण लेखक कटनी में हुए।
कहानी उपन्यास एवं व्यंग्य लेखन में सर्वाधिक उल्लेखनीय हैँ – सुबोधकुमार श्रीवास्तव, देवेन्द्र कुमार पाठक। कविता की गीत नवगीत लेखन परंपरा को समृद्ध करने वाले सुरेंद्र पाठक, रामसेंगर, राजा अवस्थी आदि के अलावा ओम रायजादा, अनिल खंपरिया ग़ज़ल गीत के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मंचके कवियों की परंपरा भी यहाँ खूब समृद्ध है। ‘किरण’ यहाँ पर कला संगीत का सक्रिय मंच है।

कटनी किन्नर महापौर

बघेली, बुँदेली और गोंडी बोलियों की त्रिधारा कटनी को बोलियों का प्रयाग बनाती है। किन्नर प्रत्याशी कमला जान ने नगर महापौर बनकर पूरे देश में कटनी की धूम मचा दी थी। करमा, राई, फाग, भगत आदि लोकनृत्य लोकगीत यहाँ नाचे गाए जाते हैं।
झिंझरी
कटनी जिले के जबलपुर रोड पर कटनी से 3 किलोमीटर दूर झिंझरी शैलाश्रय है। यहां चूना पत्थर की 14 विशाल मेंढकाकार चट्टानें देखी जा सकती है। इन प्रागैतिहासिक कालीन चट्टानों में तत्कालीन मानव के औजारों, हथियारों, पशु पक्षी, मानवाकृतियाँ, पेड़ और पत्तों आदि के शैलचित्रों को देखा जा सकता है। ये शैलचित्र 10000 ईसा पूर्व से 4000 ईसा पूर्व के माने जाते हैं। सरकारी संरक्षण के बावज़ूद अब ये समाप्तप्राय हैं।
रुपनाथबहोरीबंद
यह तीर्थस्थल बहोरीबंद से 3 किलोमीटर दूर है। भगवान शिव की पंचलिंग की आकर्षक प्रतिमा यहीं स्थापित है। यह एक-दूसर के ऊपर बने तीन कुंड देखे जा सकते हैं। सबसे निचले कुंड को सीताकुंड, बीच के कुंड को लक्ष्मण कुंड और सबसे ऊपर वाले कुंड को राम कुंड के नाम से जाना जाता है।
विजयराघवगढ़
यह ऐतिहासिक स्थल कटनी से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। यह बहुत ही खूबसूरत है।राजा प्रयागदास के काल में यह एक विशाल और लोकप्रिय नगर था। विजयराघवगढ़ किला यहां का मुख्य आकर्षण है। भगवान विजयराघव को समर्पित एक मंदिर भी यहां देखा जा सकता है। मात्र डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर विजयराघवगढ़-बरही सड़क मार्ग पर पूर्व दिशा में कटनी की जीवनरेखा ‘ छोटी महानदी ‘ बहती है।
जिसके किनारे पर एक छोटा सा पार्क है। यहाँ देवी शारदा का मंदिर है। जिसका महत्व मैहर की देवी शारदा के समान माना जाता है। रियासत के किशोर राजा सरयू प्रताप सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया था। प्रमुख सहायक सरदार बहादुर ख़ान को लेकर मुड़वारा कटनी में अंग्रेजों से मुक़ाबला किया। किशोर राजा को सुरक्षित कर बहादुरखान ने अपने प्राणों का बलिदान कर वफ़ादारी की मिसाल कायम की . आज भी कटनी में महिला महाविद्यालय के बाजू में शहीद की मज़ार है। यह युद्ध प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अवधि में हुआ।
मूड़ वारे यानी सिर काटे थे अंग्रेजों ने यहाँ भारतीयोँ के इसलिए कटनी का पश्चिमी दक्षिणी भाग ‘ मुड़वारा’ के नाम से राजस्व अभिलेखों में लिखा जाने लगा था। ठाकुर जगमोहनसिंह इसी राजपरिवार के कवि थे। इनका लिखा काव्य उपन्यास ‘ श्यामा स्वप्न ‘ भारतेंदुकालीन महत्वपूर्ण काव्यकृति है। विजयराघवगढ़ का किला आज अपने अवशेष रूप में भी अपने गौरवशाली अतीत की शौर्य गाथा सुनाता पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है।
बिलहरीपुष्पावति
बिलहरी कटनी से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्राचीन काल में पशुपति नगरी के नाम से विख्यात इस नगर में अनेक प्राचीन मूर्तियां देखी जा सकती हैं। यहां से प्राप्त अनेक ऐतिहासिक और प्राचीन वस्तुओं को नागपुर संग्रहालय में रखा गया है।यह महान आध्यात्मिक संत श्री तारण तरण की जन्म भूमि है।यहाँ आकर्षित मंदिर हैं।
बहोरीबंद
बहोरीबंद गांव के आसपास अनेक ऐतिहासिक स्मारकों को देखा जा सकता है। जैन तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ की 12 फीट ऊंची प्रतिमा, भगवान विष्णु और सूर्य की प्रतिमाएं यहां का मुख्य आकर्षण हैं। यहां एक कुंड के निकट स्थित एक पत्थर में भगवान विष्णु के दस अवतारों को प्रदर्शित किया गया है। यहां स्टोन पार्क की स्थापना के बाद इस गांव का महत्व और बढ़गया
तिगवा
कटनी जिले का यह छोटा-सा गांव प्रारंभ में झांझनगढ़ के नाम से जाना जाता था। सपाट छत वाला 1500 साल पुराना मंदिर यहां देखा जा सकता है। तिगवा में 30 से भी अधिक मंदिरों को अवशेष हैं। इस गांव के चारों तरफ अनेक मूर्तियां देखी जा सकती हैं। भगवान नृसिंह और पार्श्‍वनाथ की प्रतिमा काफी लोकप्रिय हैं
यहां सबसे ज्यादा प्रसिद्ध शारदा माता का मंदिर है। यहां से थोड़ा आगे जाएंगे अब तो तआपको बरही और डिहुँटा के बीच भगवान शंकर अपने आप प्रकट होते हुए मिलेंगे यह धाम जलहरी धाम कहा जाता है यहां अपने आप भगवान शंकर प्रगट होते हैं।
चर्गवा
कटनी जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर चर्गवा गांव है यहां से 2 किलोमीटर दूर एक ऐतिहासिक मंदिर है जो की काली माता का मंदिर है यहां एक विशाल पत्थर है जिसकी ऊंचाई 30 फुट है जो कि एक नीम के पेड़ के बराबर है और इस पत्थर के नीचे ही काली माता विराजमान हैं और चर्गवा में 2 किलोमीटर दूर शंकर जी का मंदिर स्थित है जहां एक विशालकाय बरगद का पेड़ है जिसकी शाखाएं 150मीटर तक फैली हुई है।
भारत का मध्य बिंदु करौंदी
कटनी जिले मूवी पान उमरिया तहसील के ग्राम करौंदी मनोहर गांव में भारत का मध्य बिंदु भौगोलिक केंद्र बिंदु स्थित है स्थान अक्षांश 23 -30,48″ और देशांतर80-19’53” पर स्थित है जिसकी स्थापना तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमान चंद्रशेखर जी के द्वारा की गई इसी तरह स्वतंत्रता पूर्व भी अखंड भारत का केंद्र बिंदु मध्य प्रदेश ही था

 

हरि शंकर पाराशर कटनी (मध्य प्रदेश) ✍️

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