*हिंदी पत्रकारिता दिवस के वर्तमान पर एक लेख*

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क्या भारतीय मीडिया पक्षपातपूर्ण है?
खींचों न कमानों को न तलवार निकालो!
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो
अकबर इलाहाबादी ने जब यह शेर लिखा तब भारत पर अंग्रेजों की हुकूमत थी और उनके सामने गुलाम जनता संसाधनविहीन थी।शायद यह शेर लिखते हुए उनके मन मे अखबार की ताकत के प्रति कोई शंका नहीं रही होगी व क्रूर शासन से मुक्ति का रास्ता जागरूक जनता के रूप में ही महसूस हुआ होगा!नेपोलियन भी मानता था कि चार विरोधी अखबारों की मारक क्षमता के आगे हजारों बंदूकों की ताकत बेकार है।किसी भी देश या समाज की दशा का वर्तमान इतिहास जानना हो, तो वहां के किसी सामयिक अखबार को उठाकर पढ़ लीजिए, वह आपसे स्पष्ट कर देगा।
मीडिया जन सरोकार का मिशन होता है।आजादी के आंदोलन के समय मीडिया ने अपने मिशन को बखूबी अंजाम भी दिया मगर आज मीडिया मिशन से भटककर प्रोफेशन बन चुका है जहां टीआरपी की मंडी सजती है और किराए के कंठों से हाट बाजार/रेहड़ी वालों की तरह चिल्ला-चिल्लाकर खबरें बेची जा रही है।जनसाधारण का सकारात्मक दृष्टिकोण बनाने के सामाजिक उत्तरदायित्व से मीडिया भटकता नजर आ रहा है।
भारत की बहुसंख्यक जनता रोटी,कपड़ा,मकान, शिक्षा,चिकित्सा,बिजली,पानी सरीखे बुनियादी मुद्दों पर संघर्ष कर रही है।मीडिया ने सामाजिक सरोकारों को भुलाते हुए एक प्रच्छन्न उद्योग का स्वरूप ग्रहण किया है, जिसमें समाचार उत्पाद बन गए हैं। अखवारों के रंगीन पन्नों में विचार-शून्यता साफ झलकती है। नव मीडिया में जहां फिल्मों, अपराध, स्कैंडल,लजीज व्यंजन और सेक्स संबंधित ऐसी तमाम सामग्री बहुतायत में परोसकर एक ऐसी काल्पनिक दुनिया का निर्माण किया जा रहा है जिसका अधिकतम जनता से कोई सरोकार नहीं है।
आज पत्रकार कंठ व बुद्धि के किराए से अपनी आजीविका चलाने को मजबूर है।कभी अखबार मालिक के खिलाफ ही लिखने का हौसला रखने वाला पत्रकार जगत आज विविध भारती के फरमाइशी गीतों की तरह डिमांड पर खबरें बनाता और बेचता है।
बड़ा महीन है अखबार का मुलाजिम भी,
खुद खबर हो के, खबर दूसरों की लिखता है!”
मीडिया पहले जन-आंदोलन को गतिशीलता देते नजर आता था अब मीडिया जन-आंदोलनों का हत्यारा बन चुका है!पहले अखबार में खबर आ गई मतलब सूचना की प्रामाणिकता स्वत साबित हो जाती थी और अब आ गई मतलब टीआरपी के लिए सनसनी,खाली पन्ना भरने की कवायद,पेड न्यूज आदि होती है।
हर जरूरी व प्रभावित करने वाले मुद्दे को दूसरे एंगल पर रखकर मज़लूम को ही ज़ालिम और ज़ालिम को जायज़ ठहराने का खेल सत्ता के इशारे पर दिनरात मीडिया द्वारा खेला जा रहा है।आज आजादी के 70साल बाद देशद्रोही/गद्दारी के प्रमाणपत्र मीडिया द्वारा बांटे जा रहे है।
कौम के गम में डिनर खाते हैं, हुक्काम के साथ!
रंज लीडर से बहुत हैं, मगर, आराम के साथ!!
राष्ट्रीय जजमेंट संवाददाता हरिशकरपाराशर कटनी

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