मध्यप्रदेश : उपचुनाव भी आम चुनाव की तरह बने नाक का सवाल, तथा शिवराज और नरोत्तम मिश्रा के बीच जंग जारी |

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भोपाल । आम विधानसभा चुनाव की तरह ही प्रदेश में होने वाले विधानसभा के उपचुनाव कड़े मुकाबले के रूप में दिखना तय है। जल्द ही प्रदेश की दो दर्जन सीटों पर उपचुनाव होना है। फिलहाल परिणाम क्या होंगे इसका अनुमान लगाना कठिन है। इन उपचुनाव को लेकर दोनों ही प्रमुख दल भाजपा-कांग्रेस अभी से पूरी ताकत के साथ चुनावी तैयारियां कर रहीं हैं। इन चुनाव परिणामों पर ही मौजूदा प्रदेश सरकार का भविष्य तय होना है। इन क्षेत्रों के मतदाता जिसके पक्ष में मतदान करेंगे उस दल की ही प्रदेश में सरकार रहना तय है।
फिलहाल भाजपा के 22 सीटों के प्रत्याशी तय हैं। उसे दो ही सीटों पर प्रत्याशी तय करना है। वहीं कांग्रेस में सभी 24 सीटों के लिए प्रत्याशी तय किया जाना है। कुछ सीटों अब ऐसी हैं जहां पर कांग्रेस का अपना कोई ऐसा नेता या कार्यकर्ता नही है, जो भाजपा के उम्मीदवार को कड़ी चुनौती दे सके। ऐसी सीटों पर कांग्रेस की नजर भाजपा के नाराज नेताओं पर लगी हुई है। कांग्रेस सूत्रों की माने तो चुनाव में वह करीब आधी सीटों पर भाजपा नेताओं को पार्टी में शामिल कराकर उन्हें प्रत्याशी बनाने की पूरी तैयारी कर रही है।
इसके पीछे कांग्रेस के रणनीतिकारों की मंशा भाजपा नेताओं की नाराजगी भुनाने की है। दरअसल कांग्रेस से बागी होकर भाजपा में नेताओं के शामिल होने से भाजपा के कई मूल कार्यकर्ताओं में बेहद नाराजगी है। भाजपा पहले ही इन बागियों को उपचुनाव में प्रत्यााशी बनाने का वादा कर चुकी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जितने विधायक कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए हैं, उन्हें ही उपचुनाव में पार्टी का टिकट मिलेगा। इससे भाजपा के मूल नेताओं को अपना भविष्य पूरी तरह खतरे मे नजर आ रहा है। यही वजह है कि कांग्रेस ने करीब ऐसे नेताओं वाली एक दर्जन सीटें चिन्हित कर ली हैं, जहां पर वह भाजपा से आने वाले मतदाताओं पर मजबूत पकड़ रखने वाले नेताओं पर दांव लगाने की तैयारी मे है।
राजपूत, सिलावट और सियौदिया पर खास फोकस
कांग्रेस की सिंधिया समर्थक तीन अंचलों के तीन दिग्गज नेताओं नजर है। यह नेता हैं मालवा के तुलसी सिलावट, बुंदलखंड के गोविंद सिंह राजपूत एवं ग्वालियर के महेंद्र सिंह सिसोदिया। इन तीनों ही नेताओं को सिंधिया की आंख, नाक और कान माना जाता है। यही वजह है कि कांग्रेस ने सिलावट के खिलाफ कांग्रेस छोडक़र भाजपा में गए पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू की घर वापसी कर मैदान में उतारने की तैयारी कर ली है।
राजपूत के खिलाफ भाजपा की पूर्व विधायक पारूल साहू को तैयार करने के प्रयास जारी हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में पारूल का टिकट काट दिया था। पारूल के पिता पूर्व कांग्रेसी हैं। इसी तरहसे सिसोदिया के खिलाफ भाजपा के पूर्व मंत्री कन्हैयालाल अग्रवाल को तैयार किया जा रहा है। इससे साफ है कांग्रेस कांटे से कांटा निकालने की रणनीति पर काम कर रही है।
इमरती, ऐंदल, प्रद्युम्न को घेरने की तैयारी
पूर्व मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर एवं इमरती देवी पहले से ज्योतिरादित्य सिंधिया के इशारे पर चलते हैं , दिग्विजय सिंह से जुड़े रहे ऐंदल सिंह कंसाना भी सिंधिया के साथ कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं। प्रद्युम्न की सीट ग्वालियर में हारे जयभान सिंह पवैया कांग्रेस में नहीं आ सकते, लेकिन उनकी नाराजगी भुनाने की तैयारीकी जा रही है। इमरती देवी देवी के मुकाबले बसपा की सत्यप्रकाश परसोदिया को प्रत्याशी बनाने की तैयारी है।
रुस्तम, दीपक, शेजवार के रुख पर नजर
भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने फिलहाल मुरैना के रुस्तम सिंह, हाटपिपल्या के दीपक जोशी एवं सांची के मुदित शेजवार को तलब कर मना लिया है, लेकिन खबर है कि इनकी नाराजगी अब तक दूर नहीं हुई हुई। कांग्रेस की कोशिश इन्हें भी पार्टी में लाकर चुनाव लड़ाने की है। यही वजह है कि कांग्रेस के आला नेता लगातार इनके रुख पर नजर बनाए हुए हैं।
अनूपपुर, मुंगावली और मेहगांव भी निशाने पर
विंध्य अंचल में कांग्रेस के आदिवासी चेहरा रहे दिग्विजय सिंह के करीबी बिसाहूलाल सिंह भी अब भाजपा में हैं। वे भाजपा के रामलाल रौतेल को हराकर विधायक बने थे। अब कांग्रेस रौतेल को कांग्रेस में लाकर प्रत्याशी बनाना चाहती है। मुंगावली में लंबे समय तक भाजपा के स्व. देशराज सिंह यादव का दबदबा रहा है, लेकिन एक उपचुनाव हारने पर भाजपा ने उनकी पत्नी बाईसाहब यादव को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया।
बागी पूर्व विधायक बृजेंद्र सिंह यादव के मुकाबले कांग्रेस बाईसाहब को अपने पाले में लाने की कोशिश में है। मेहगांव से कांग्रेस छोडक़र भाजपा में जाने वाले चौधरी राकेश सिंह को मैदान में उतारने की तैयारी है। राकेश की राह में अजय सिंह रोड़ा बने हुए हैं। चौधरी के लिए अजय सिंह को मनाने के प्रयास जारी हैं।
शिवराज सिंह और नरोत्तम मिश्रा के बीच सब ठीक है नहीं चल रहा क्या?
भोपाल। सत्ता के माइक वन यानि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी कैबिनेट के नंबर दो गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के बीच इन दिनों अबोलापन हैं। यह अबोलापन नेताओं और अफसरों के बीच चर्चा का विषय है। अबोलापन क्यों है इसका कारण तलाशा जा रहा है और यह जल्द से जल्द दूर हो इसकी कोशिश वह लोग कर रहे हैं जो सामान्यतः ऐसे मामलों से दूर रहते हैं। वैसे इसका एक कारण दोनों द्वारा नापसंदगी को मजबूरी में स्वीकार करना बताया जा रहा है।
नीरज मंडलोई का लोक निर्माण विभाग का प्रमुख सचिव बनना उतना चौंकाने वाला नहीं माना जा रहा है जितना डीपी आहूजा का जल संसाधन और नितेश व्यास का नगरीय प्रशासन विभाग का प्रमुख सचिव बनना। दोनों अफसरों को जिन महकमों की कमान सौंपी गई है उन पर या तो अतिरिक्त मुख्य सचिव या फिर इस पद पर पदोन्नति के कगार पर खड़े वरिष्ठ प्रमुख सचिव ही अब तक काबिज होते रहे। निर्माण से जुड़े इन महकमों में हुई इन पदस्थापनाओं को उस डी फैक्टर से जोड़कर देखा जा रहा है जो शिवराज सिंह चौहान के सत्ता में आते ही नौकरशाहों की पदस्थापना के मामले में बहुत पावरफुल हो जाता है।
वही इन दिनों ग्वालियर कनेक्शन की बड़ी अहमियत है और इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर की डीन डॉ. ज्योति बिंदल। कोरोना सेंपल टेस्टिंग के मामले में जब मेडिकल कॉलेज पर उंगली उठने लगी और कुछ बड़ी लापरवाही पकड़ी गई तो तय हुआ कि बिंदल को हटवाया जाए। स्थानीय स्तर से पहल भी हो गयी लेकिन बिंदल का मददगार बना ग्वालियर कनेक्शन।
यह फिर नरेंद्र सिंह तोमर का हो या फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया या नरोत्तम मिश्रा या यशोधरा राजे में से कोई। इस कनेक्शन ने स्थानीय पहल को विफल करवा दिया। हां इसका फायदा डॉक्टर बिंदल के अलावा संपत फार्म में रह रहे डॉक्टर प्रदीप भार्गव को भी पूरा मिल रहा है जिनकी सलाह इन दिनों एमजीएम से जुड़े हर निर्णय में अहम होती है। अब आप पता कीजिए कि बिंदल और भार्गव का कनेक्शन क्या है।इसी कड़ी एक बात और निकल कर सामने आ रही है जो चर्चाओं में खूब चटकारे लेकर सुनी जा रही है इसमें बताया जा रहा है की

पुरुषोत्तम पाराशर यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया के आरके मिगलानी। सिंधिया के सबसे विश्वस्त पाराशर को पिछले लोकसभा चुनाव में भी मुरैना से मैदान में लाने की मांग सिंधिया समर्थकों ने की थी लेकिन तब रामनिवास रामनिवास रावत ज्यादा वजनदार निकले और बात आई गई हो गयी। अब जबकि उपचुनाव की एक-एक सीट सिंधिया के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है पाराशर को जौरा से मैदान में लाने की अटकलें हैं। यहां से पहले सिंधिया के कट्टर समर्थक बनवारी लाल शर्मा विधायक थे_। वही

ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी यह लगने लगा है कि 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में उनके समर्थकों की नैया उनके अलावा दो ही लोग पार लगा सकते हैं। एक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और दूसरे संघ के क्षेत्रीय प्रचारक दीपक विस्पुते। दरअसल इस चुनाव में कांग्रेस से भाजपा में आए सिंधिया समर्थकों की हार जीत इस बात पर निर्भर करेगी कि भाजपा के लोग कितनी ईमानदारी से उनके लिए काम करते हैं।

चुंकि सरकार बचाना शिवराज की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसलिए खुद वे और भाजपा को हमेशा सत्ता में देखने वाला संघ का रोल भी इसमे अहम रहेगा। संघ इस बात की भी निगरानी रखेगा की कार्यकर्ता ईमानदारी से काम करें ताकि सरकार बची रहे। इस जरूरत ने शिवराज के साथ ही विस्पुते से भी सिंधिया ने संवाद बढ़ा रखा है
वहीं पर एक चीज और निकल कर सामने आ रही है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि पहले जनसंघ फिर जनता पार्टी और फिर भाजपा, तीनों दौर में वीरेंद्र कुमार सकलेचा और सुंदरलाल पटवा की अदावत किसी से छुपी नहीं रही।
जिसे जब मौका मिला उसने दूसरे को निपटाया। पटवा जिंदा रहते हुए अपने दत्तक पुत्र सुरेंद्र पटवा को मंत्री बनवा गए और अपने बलबूते पर राजनीति में स्थापित हुए सकलेचा के बेटे ओमप्रकाश सकलेचा कि राह रोकने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। अब पटवा इस दुनिया में नहीं है, सुरेंद्र पटवा गंभीर वित्तीय मामलों में गिरे हुए हैं और अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। ऐसी स्थिति में भाग्य इस बार चार बार के विधायक ओमप्रकाश सकलेचा का साथ देता नजर आ रहा है। मजबूत दिल्ली कनेक्शन भी इसमें मददगार हो सकता है। वहीं दूसरी ओर अगर देखा जाए तो ओर प्रशासनिक स्तर पर भी एक वजन दारी जो निकल कर सामने आ रही है वह कि

किस्मत हो तो प्रबल सिपाहा जैसी। शान से झाबुआ की कलेक्टरी कर रहे सिपाहा जितने चहेते पूर्व मुख्य सचिव एसआर मोहंती के थे, उतने ही वर्तमान मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के भी। शिवराज सरकार के जाने और कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद वह मोहंती के कारण ही अपना पद बचा पाए थे अब मोहंती भले ही मुख्यसचिव नहीं हैं लेकिन मुख्य सचिव की हमदर्दी तो सिपाहा के साथ है।मोहंती जब इंदौर में कलेक्टर थे तब प्रबल उनके प्रोबेशनर थे और जब इकबाल सिंह बैंस भोपाल में कलेक्टर थे तब वह वहां अहम भूमिका में थे।

हरि शंकर पाराशर राष्ट्रीय जजमेंट संवाददाता (कटनी) ✍️

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