उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान अपने कर्मचारियों और श्रमिकों को पूरा वेतन नहीं देने वाले निजी प्रतिष्ठानों के खिलाफ 12 जून तक दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी। इसपर लगी अंतरिम रोक की अवधि गुरुवार को 12 जून तक के लिए बढ़ा दी गई।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने इस मामले की वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई पूरी करते हुए दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने संबंधी आदेश की अवधि बढ़ाई।
न्यायालय ने गृह मंत्रालय की 29 मार्च की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा। मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान यह चिंता थी कि श्रमिक बगैर पारिश्रमिक के नहीं रहने चाहिए, लेकिन एक चिंता और भी थी कि औद्योगिक इकाइयों के पास उन्हें देने के लिए धन ही नहीं हो तो। ऐसी स्थिति में संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
इस बीच, न्यायालय ने सभी पक्षकारों से कहा कि वे अपने अपने दावों के समर्थन में लिखित में दलीलें पेश करें। शीर्ष अदालत ने 15 मई को केंद्र से कहा था कि लॉकडाउन के दौरान अपने श्रमिकों को पूरा पारिश्रमिक देने में असमर्थ रहे निजी प्रतिष्ठानों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए।
इस बीच, केंद्र ने भी 29 मार्च के निर्देशों को सही ठहराते हुए न्यायालय में हलफनामा दाखिल किया। उसने कहा कि अपने कर्मचारियों और श्रमिकों को पूरा भुगतान करने में असमर्थ निजी प्रतिष्ठानों को अपनी ऑडिट की गई बैंलेंस शीट और खाते न्यायालय में पेश करने का आदेश दिया जाना चाहिए।