खनिज और शराब कारोबारियों पर बकाया राशि की वसूली कर ले, तो आत्मनिर्भर बन सकती है राज्य सरकार

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भोपाल । इन दिनों राज्य सरकार आर्थिक संक्रमण काल से गुजर रही है। राज्य सरकार 20 मार्च को एक हजार करोड़ का कर्जा भी ले चुकी है और भविष्य में और भी कर्जा लेने की तैयारी में है। मगर राज्य सरकार खनिज और शराब कारोबारियों पर बकाया राशि की वसूली कर ले, तो वह आत्मनिर्भर बन सकती है। अकेले राजस्थान की तीन मार्बल कारोबारियों पर ही 12 हजार करोड़ की राजस्व वसूली बकाया है। सुप्रीम कोर्ट की एंपावर्ड कमेटी ने कार्रवाई करने के लिए हरी झंडी दे दी हैै।
लेकिन खनिज और वन विभाग के अफसरान वसूली करने में हिचकिचा रहे हैं। जयपुर के मार्बल कारोबारियों द्वारा नौकरशाह से लेकर सेवकों तक की स्वार्थ सिद्धि की पूर्ति कर दी जाती है। जिसकी वजह से वसूली नहीं हो पा रही है। वन भूमि पर अवैध खनन और खनन किए जाने की हर्जाना वसूलने की लड़ाई मेसर्स एस अंकुन मिनरल्स प्राइवेट लिमिटेड कटनी द्वारा लड़ी जा रही है।
कटनी कलेक्टर एवं माइनिंग विभाग ने कटनी जिले की बहोरीबंद तहसील के ग्राम नीमास की खसरा क्रमांक 220 मेसर्स शारदा मार्बल्स, दिव्या मार्बल्स और मेसर्स अंकुन मिनरल्स को 22 मार्च 2005 को उत्खनन करने की अनुमति प्रदान की। वन विभाग के अधिकारियों का मानना है कि उत्खनन के लिए पट्टे पर दी गई जमीन वन भूमि है। खनिज विभाग और जिला कलेक्ट्रेट कार्यालय में वन भूमि को पथरीली जमीन बताते हुए उसे 20 साल के लिए उत्खनन के लिए लीज पर दे दिया गया।
मेसर्स अंकुन मिनरल्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर अजय गोयनका की मानें तो राजस्थान की कंपनी मेसर्स दिव्या मार्बल्स और शारदा मार्बल्स ने आवंटित पट्टे की जमीन पर खनन ना करके उसके आसपास क्षेत्रों में मार्बल का उत्खनन किया। राजस्थान के मार्बल्स कारोबारियों शांतिलाल संघवी और सिद्धार्थ संघवी द्वारा की गई अवैध उत्खनन की रॉयल्टी राशि वसूलने के लिए अंकुन मिनरल्स प्रा.लि. के अजय गोयनका ने सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक दस्तक दी।
इसके साथ खसरा नंबर 220 की भूमि वन और राजस्व भूमि का विवाद भी सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया. विवाद के चलते सुप्रीम कोर्ट ने वन भूमि पर हो रहे उत्खनन पर रोक लगा दी। उत्खनन पर रोक लगाने संबंधित आदेश की प्रति शासन और वन मंडल अधिकारी कटनी को जारी किया। वन और राजस्व सीमा विवाद के निराकरण तक खसरा क्रमांक 220 के आसपास हो रहे उत्खनन पर रोक लगा दी गई।

सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए भेजी कमेटी –

उच्चतम न्यायालय ने विवादास्पद खनिज पट्टे की जांच के लिए केंद्रीय अधिकार कमेटी को कटनी भेजा। केंद्रीय अधिकार समिति ने 12 जुलाई 2011 कलेक्टर कटनी से दस्तावेज मांगे। कमेटी ने जांच में पाया कि 22 सीमांकन के कारण खसरा नंबर 220 का क्षेत्रफल सीमावर्ती खतरों में शामिल हुआ है। सीमांकन के लिए आयुक्त भू अभिलेख ग्वालियर एवं वन विभाग के सूचना प्रौद्योगिकी कट के सहयोग से संयुक्त टीम गठित की गई। संयुक्त सीमांकन किए जाने पर यह तथ्य प्रकाश में आया कि खसरा क्रमांक 220 के आसपास क्षेत्रों में पूर्व से ही उत्खनन पाया गया।
ड्रोन का सर्वे कराया गया और तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक जबलपुर एम काली दुरई ने अवैध उत्खनन की एसेसमेंट किया। 22 अप्रैल 2019 को डीएफओ कटनी और मुख्य वन संरक्षक जबलपुर ने पाया कि दिव्या मिनरल्स और शारदा मिनरल्स द्वारा 16, 879, 385.10 मीट्रिक टन मार्बल का उत्खनन किया गया। इसकी अनुमानित मूल्य 12000 करोड़ रुपए से ज्यादा की रायल्टी राशि राजस्थान की कंपनियों से वसूल किया जाना है।

प्रमुख सचिव खनिज ने दी गलत जानकारी –

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित केंद्रीय से अधिकार कमेटी की 2019 में बैठक हुई । इस बैठक में तत्कालीन प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई उपस्थित थे। साधिकार समिति ने उपस्थित प्रमुख सचिव खनिज मंडलोई से सवाल किया कि रॉयल्टी क्यों नहीं वसूल की गई। इस पर मंडलोई ने कमेटी को कार्रवाई करने का आश्वासन दिया। कमेटी ने माना कि उत्खनन वन भूमि पर हुआ है।

क्यों नहीं करते हैं कार्रवाई –

खनिज विभाग के आला अफसरान राजस्थान के मार्बल कारोबारियों से रॉयल्टी वसूल नहीं करने का बहाना तैयार कर रखा है। जब भी उन पर दबाव बनाया जाता है, तब वह यह कहते हुए रॉयल्टी वसूलने से इनकार कर देते हैं कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है.। कार्रवाई कैसे करें ? जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उत्खनन पर रोक लगाई है। वसूली और कार्रवाई करने के लिए केंद्रीय साधिकार समिति ने स्वयं निर्देश दिए हैं।
हरीशंकर पाराशर RJ, कटनी

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