मिर्गी का इलाज: एडवांस प्रक्रिया के साथ अब आसानी से होगा
मिर्गी के इलाज की प्रक्रिया
कोविड 19 की महामारी ने हमारा जीवन पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। एक तरफ जहां मास्क,
सेनिटाइजर और सोशल डिस्टेंसिंग हमारे रुटीन में सामान्य रूप से शामिल हो चुके हैं, तो दूसरी ओर स्थिति यह
है कि बहुत से लोग अपना रेगुलर मेडिकल चेकअप तक नहीं करा पा रहे हैं।
हालांकि, सरकार ने नियमों में बदलाव कर देश के बहुत से हिस्सों को खोल दिया है
लेकिन लोग कोरोना वायरस से इतने डरे हुए हैं कि वे अभी भी अपने घरों से बाहर निकलने से कतरा रहे हैं।
मिर्गी के रोगी को समय पर इलाज और नियमित रूप से परामर्श की जरूरत होती है।
मिर्गी मस्तिष्क से संबंधित रोग है, जिसमें रोगी को मिर्गी का दौरा पड़ता है।
दौरा पड़ते ही रोगी बेहोश होकर नीचे गिर जाता है और वह अपने हाथ-पैर झटकने लगता है।
उसे देखकर ऐसा लगता है जैसे उसे बिजली का करंट लगा हो। यह बीमारी सदियों से चली आ रही है
और इससे पीड़ित लोगों और उनके परिवार को अक्सर लोग हीन भावना से देखते हैं।
गुरूग्राम स्थित आर्टेमिस अस्पताल के अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस न्यूरोलॉजी विभाग के डायरेक्टर
डॉ. सुमित सिंह का कहना है कि मिर्गी मस्तिष्क की बीमारी है, जो दुनियाभर के लोगों को प्रभावित करती है।
विश्व में, लगभग 65 मिलियन लोग मिर्गी की बीमारी से ग्रस्त हैं जिसमें से 80 प्रतिशत मरीज ऐसे देशों से हैं जहां
स्त्रोतों की कमी है। इन देशों में, हर साल प्रति एक लाख की आबादी पर 40-70 के बीच लोग मिर्गी का शिकार
बनते हैं। सामान्य तौर पर, प्रति 1,000 पर 4-10 लोग इस बीमारी से ग्रस्त पाए जाते हैं। हालांकि, विकासशील
देशों के अध्ध्यनों के अनुसार प्रति 1000 पर 7-14 लोग इस बीमारी से ग्रस्त पाए जाते हैं।
भारत में मिर्गी के इलाज से संबंधित एक और चुनौती यह है कि मिर्गी के लगभग तीन चौथाई लोगों को वह
इलाज नहीं मिल पाता है, जिसकी उन्हें जरूरत होती है। इसे ‘ट्रीटमेंट गैप’ कहा जाता है। इसके कई कारण हो
सकते हैं जैसे कि एंटी-एपिलेप्टिक दवाइयों के बारे में न पता होना, गरीबी, सांस्कृतिक मान्यता, गलत धारणाएं,
इलाज की कमी, डॉक्टरों की कमी, मंहगा खर्च आदि। भारत में ट्रीटमेंट गैप देखा जाए तो शहरों में यह अंतर
22 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 90 प्रतिशत का अंतर पाया गया है।
डॉ. सुमित सिंह का कहना है कि दरअसल, मिर्गी का दौरा मस्तिष्क के विभिन्न भागों को प्रभावित करती है
इसलिए इस दौरे के कई प्रकार हो सकते हैं। इन दौरों को मस्तिष्क के उस भाग के आधार पर परिभाषित
किया जाता है, जहां सबसे ज्यादा हलचल पाई जाती है। फोकल दौरे मस्तिष्क के विशिष्ट भागों में पाए जाते हैं,
जबकी सामान्य दौरे मस्तिष्क के दोनों हिस्सों को प्रभावित कर सकते हैं।
मस्तिष्क का जो हिस्सा दौरे के लिए जिम्मेदार होता है, उसके निदाने के लिए एमआरआई, पीईटी और सीटी
स्कैन का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद सर्जरी की जाती है जिसे 2 चरणों में पूरा किया जाता है।
पहले चरण में, प्रभावित भाग में छोटा सा चीरा लगाकर 2 इलेक्ट्रोड इंप्लांट की जाती हैं।
प्रक्रिया में किसी प्रकार की कोई गड़बड़ी न हो इसके लिए इन्हें इमेजिंग तकनीक की मदद से मॉनिटर पर
आसानी से देखा जा सकता है। दूसरे चरण में, न्यूरोस्टीम्युलेटर को कॉलरबोन की त्वचा के अंदर लगाया जाता है
और इसका एक्सटेंशन मस्तिष्क में लगाई गई लीड के साथ जोड़ दिया जाता है।
डॉ. सुमित सिंह का कहना है कि आमतौर पर, मिर्गी की सर्जरी में मस्तिष्क के उस हिस्से को निकाल दिया
जाता है, जहां समस्या पाई जाती है। मस्तिष्क का जो भाग दौरे के लिए जिम्मेदार होता है उसके निदान के लिए
एमआरआई, ईईजी और पीईटी स्कैन आदि जैसे विभिन्न टेस्ट किए जाते हैं। सर्जरी का विकल्प उन मामलों में
चुना जाता है जहां दवाइयों असर दिखाना बंद कर देती हैं।
कुछ समय के अंतराल के बाद दवाइयों का असर खत्म हो जाता है, जिसके कारण बार-बार दवाइयां खानी
पड़ती है। यदि मरीज को दिन में 3 बार दवा लेने की सलाह दी गई है, तो ऐसे में असर खत्म होने के कारण उसे
दिन में 8 बार दवाइयों की आवश्यकता पड़ सकती है। इससे मरीज के जीवन की गुणवत्ता खराब होती जाती है।
डीबीएस केवल उन मरीजों पर परफॉर्म की जाती है, जिनपर दवाइयों का असर होना पूरी तरह बंद हो जाता है।
ऐसे में डीबीएस सर्जरी मस्तिष्क के उस भाग को सक्रिय करती है जो दौरे के लिए जिम्मेदार होता है। डीबीएस
का असर 24 घंटों तक रहता है जिसकी मदद से मरीज का जीवन बेहतर हो जाता है।