68500 शिक्षक भर्ती मामले मे, हाइकोर्ट ने CBI जांच के दिये आदेश

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लखनऊ,। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने गुरुवार को सहायक शिक्षकों के 68 हजार 500 पदों पर भर्ती प्रकिया में सामने आए भ्रष्टाचार के मामलों पर कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने भर्ती प्रकिया की सीबीआइ जांच के आदेश दे दिए हैं।
सीबीआइ निदेशक को छह महीने में जांच पूरी करने के भी निर्देश दिए गए हैं। कोर्ट ने 26 नवंबर को जांच की प्रगति रिपोर्ट भी तलब की है। कोर्ट ने कहा है यदि जांच में किसी अधिकारी की संलिप्तता सामने आती है तो
सक्षम अधिकारी उसके खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करें।योगी सरकार की पहली बड़ी भर्ती प्रकिया गंभीर सवालों के घेरे में आ गई है।
महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार इस प्रकरण की जांच सीबीआइ से कराने के लिए कतई तैयार नहीं है। जांच का आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल सदस्यीय पीठ ने दर्जनों अभ्यर्थियों की याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए दिया।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया था कि कुछ उत्तर पुस्तिकाओं के पहले पृष्ठ पर अंकित बार कोड अंदर के पृष्ठों से मेल नहीं खा रहे हैं। कोर्ट ने तब ही हैरानी जतायी थी कि लगता है उत्तर पुस्तिकाएं बदल दी गई हैं।
इस पर महाधिवक्ता ने जांच का भरोसा दिया था। इसके बाद तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाकर जांच किए जाने का दावा भी सरकार की ओर से किया गया लेकिन, गुरुवारको सुनाए फैसले में जांच कमेटी के रवैये पर कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि
जिन अभ्यर्थियों को स्क्रूटनी में रखा गया था, उनके भी चयन पर अब तक निर्णय नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा कि जांच कमेटी में दो सदस्य बेसिक शिक्षा विभाग के ही हैं जबकि दोनों को कमेटी में नहीं रखा जाना चाहिए था क्योंकि उसी विभाग के अधिकारी जांच के दायरे में हैं। 
कोर्ट ने कहा कि वर्तमान चयन प्रक्रिया पर भारी भ्रष्टाचार व गैर कानूनी चयन के आरोप हैं। सरकार से स्वतंत्र व साफ-सुथरे चयन की उम्मीद की जाती है लेकिन, कुटिल इरादे से राजनीतिक उद्देश्य पूरा करने के लिए
प्राथमिक विद्यालयों में बड़े पैमाने पर गैर कानूनी चयन किए गए जिससे नागरिकों के मौलिक अधिकारी बुरी तरह प्रभावित हुए। कोर्ट प्रथम दृष्टया मानती है कि परीक्षा कराने वाले अधिकारियों ने अपने उम्मीदवारों को फायदा पहुंचाने के लिए अधिकारों का दुरुपयोग किया।
जिन अभ्यर्थियों को लिखित परीक्षा में कम नंबर मिले, उन्हें अधिक नंबर दे दिए गए। कुछ अभ्यर्थियों की उत्तर पुस्तिकाएं फाड़ दी गईं और पन्ने बदल दिए गए ताकि उन्हें फेल घोषित किया जा सके।
सरकार द्वारा बार कोडिंग की जिम्मेदारी जिस एजेंसी को दी गई थी, उसने स्वयं स्वीकार किया है कि 12 अभ्यर्थियों की कॉपियां बदली गई, बावजूद इसके उसके खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की गई। 
12460 सहायक शिक्षकों का चयन भी रद
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने बोर्ड आफ बेसिक एजूकेशन द्वारा किए गए 12460 सहायक बेसिक शिक्षकों के चयन को भी रद कर दिया है। इन भर्तियों के लिए प्रकिया पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शासनकाल में 21 दिसंबर, 2016 को प्रारंभ की गई थी।
कोर्ट ने कहा कि ये भर्तियां यूपी बेसिक एजूकेशन टीचर्स सर्विस रूल्स 1981 के नियमों के तहत नए सिरे से काउसिंलिग कराकर पूरी की जाए। चयन प्रकिया के लिए वही नियम लागू किए जाएंगे जो इनकी प्रकिया प्रारंभ करते समय बनाए गए थे।
न्यायालय ने कहा कि सारी प्रकिया तीन माह के भीतर पूरी की जाए। 
यह आदेश जस्टिस इरशाद अली की बेंच ने दो दर्जन से अधिक याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए दिया। इन याचिकाओं में 26 दिसंबर, 2012 के उस नोटिफिकेशन को रद करने की मांग की गई थी जिसके
तहत उन जिलों जहां कोई रिक्ति नहीं थी, के अभ्यर्थियों को काउसिंलिंग के लिए किसी भी जिले को प्रथम वरीयता के लिए चुनने की छूट दी गई थी। याचियों की ओर से वरिष्ठ वकील जेएन माथुर की दलील थी कि यह बदलाव भर्ती प्रकिया प्रारंभ होने के बाद किए गए थे जबकि
नियमानुसार एक बार भर्ती प्रकिया प्रारंभ हो गई तो उसे बीच में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
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ध्यान रहे, कोर्ट ने 19 अप्रैल, 2018 को एक अंतरिम आदेश जारी कर पहले ही सफल अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र देने पर रोक लगा दी थी। 

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