जब हो देश की जनता का साथ-तभी मिल सकता सत्ता का स्वाद

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राहुल गांधी को अखबार की लीड बनाने में कैसा डर ?
भोपाल ।टेलीविजन , रेडियो और समाचार पत्र मीडिया के विभिन्न प्रकार है और वर्तमान में सोशल मीडिया भी चलन में है। खबरों की कई डिजिटल वेबसाइट शुरू हुई , ई-पत्रिका का जमाना आ गया , प्रिंट अखबारों की बिक्री में कमी आने लगी है। टीवी पर एक जैसे मुददों पर चीखने चिल्लाने का खेल बन गया है और एंकर स्वयं ही जज बनकर निर्णय सुना रहें है । अतिथि अपनी बात कह दे, जो एंकर या उस न्यूज चैनल की मानसिकता के खिलाफ हो तो उसकी बेइज्जती देखते ही बनती है लेकिन फिर भी कई नेता अपनी किरकिरी कराने पहुंच जाते है, जैसे कि इनकी पार्टी इन न्यूज चैनल से ही चलती हो ।
मीडिया हो या किसी भी क्षेत्र से संबंधित व्यक्ति हो, वो किसी ना किसी विचारधारा से प्रभावित जरूर होता है। मेरी अपनी भी विचारधारा है और मैं अपनी विचारधारा पर कायम रहता हूं लेकिन जब समाचार लिखने की बात आती है तो प्रयास करता हूं कि गलत को गलत कह सकूं । राजनीतिक दलों में मेरे कई मित्र है, जिनकी कार्यशैली को पसन्द करता आया हूं और उनके अच्छे कार्यो का समर्थन भी करता हूं भले ही वो किसी भी पार्टी से हो । पत्रकारिता का दायित्व भी है जिसे मैं पूरा करने का प्रयास करता हूं ।
जब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार सरकार बनी तो कहा गया कि कांग्रेस अब खत्म हो रही है राजस्थान से प्रकाशित एक अखबार ने एक लीड खबर बनाई कि कांग्रेस कभी खत्म नही होगी और मेरा मानना है कि मजबूत और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष जरूरी है। जब सत्ता पक्ष यह मान ले कि विपक्ष नही है तो यह तय है कि वह अपने निर्णयों में गलती करने लगता है और यह गलती देशवासियों के लिए फायदेमंद नही होती है। इसमें भी कोई दो राय नही है कि गलतियां कांग्रेस ने की है और इसलिए ही देश में कमजोर हुई।
यह भी तय है कि भाजपा का आईटी सेल कांग्रेस की आईटी सेल से मजबूत है और इसलिए ही सोशल मीडिया पर भाजपा का बोलबाला है। आज के समय में सोशल मीडिया पर जितना झूठ परोसा जा रहा है वो अति हो चुका है। वहीं अखबार और टीवी न्यूज चैनल एक उधोग बन रहा है जो सत्ता के साथ या धन के साथ ही चलता है । कुछ विद्वान लोग बतातें है कि देश में दो-चार मीडिया संस्थान और कुछ गिनती के पत्रकार है जो तटस्थ होकर पत्रकारिता कर रहें है । मीडिया के हालात को देखते हुए आम आदमी सूचना प्राप्त करने के लिए ही अखबार पढ़ रहा है या टीवी देख रहा है।
मेरा सवाल यह है कि क्या कारण है कि राहुल गांधी कई बार तार्किक तरीके से राष्ट्रहित की बात करते है तो भी वे समाचार पत्रों और न्यूज चैनल की लीड खबर नही बन पातें है जबकी दूसरे और तीसरी श्रेणी के नेता कई बार लीड खबर में दिखाई देतें है। दूसरा सवाल है कि क्या राहुल गांधी को लीड खबर में दिखाने से डर लगता है ? भैया , सत्ता तो उसी की आएगी जिसके साथ देश की जनता होगी ।
राष्ट्रीय जजंमेंट संवाददाता कटनी

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