कुछ को बचाने के लिए विकास दुबे का मरना जरूरी था, ये 6 सवाल जिनका जवाब बहुतों को ‘वास्तव’ में ले डूबता

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विकास दुबे को पुलिस ने कानपुर से 30 किलोमीटर दूर भौंती नाम की जगह पर मार गिराया है. पुलिस के मुताबिक उज्जैन से उसे सड़क के रास्ते लाया जा रहा था तभी काफिल में शामिल एक वाहन पलट गया इसका फायदा उठाकर उसने भागने की कोशिश जिसमें पुलिस ने उसे मार गिराया है. लेकिन पुलिस की इस थ्योरी पर सवाल उठ रहे हैं. जब विकास दुबे ने बड़े आराम से खुद को सरेंडर किया और उसे पता था कि अब उसे कोर्ट में पेश किया जाएगा यानी एनकाउंटर का खतरा टल चुका था तो भागने की कोशिश क्यों करेगा.
गौरतलब है कि विकास दुबे के मामले में पुलिस की भूमिका शुरू से ही संदिग्ध रही है और उसके एक गुर्गे ने कैमरे के सामने बोला है कि उसे पकड़ने के लिए पुलिस आ रही है इसकी सूचना उसे थाने से ही दी गई है. दूसरी ओर कुछ मीडिया रिपोर्टस की मानें तो उज्जैन में जब उससे पूछताछ की जा रही थी तो वहां भी उसने कबूला था कि उसकी मदद में कई पुलिस चौकियां शामिल थीं. कुल मिलाकर विकास दुबे के खत्म होते ही ये सवाल भी हमेशा के लिए दफन हो गए.
1.कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों के मारने के बाद आखिरकार वह उज्जैन कैसे पहुंचा. कौन-कौन से पुलिसवाले उसकी मदद कर रहे थे. किनकी मदद से ग्वालियर में उसके लिए फर्जी आधार कार्ड बनवाया गया.
2.विकास दुबे के ऊपर किन नेताओं का हाथ था और किनकी मदद से उससे पुलिस महकमा खौफ खाता था. यहां तक कि एसटीएफ के बड़े अधिकारी का भी उससे संबंध था.
3.2022 में क्या वह विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर था. अगर यह बात थी तो वह किन-किन पार्टियों से टिकट के लिए संपर्क में था.
4.साल 2001 में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री सुरेश शुक्ला की हत्या के मामले में जब वह बरी हुआ तो किसके दबाव में इस मामले में दोबारा अपील नहीं की गई.
5.क्या विकास दुबे का एनकाउंटर किसी दबाव में किया गया है क्योंकि इससे कई लोगों का राजफाश होने की आशंका थी जिसमें लगभग सभी पार्टियों को लोग शामिल थे.
6.क्या उज्जैन में उसका आत्मसमर्पण कराने के लिए भी कई लोग शामिल थे क्योंकि जब राज्यों की पुलिस अलर्ट पर थी तो वह किसी के गिरफ्त में क्यों नहीं आया.
इस देश मे विकास का यही हश्र होता है, विकास पहले सत्तासीन नेताओं का ओजार बनता है उनके विरोधियों को निपटाता है, फिर वह काम नही रह जाता उसे भगा दिया जाता है जैसे तैसे विकास मंदिर की आड़ लेकर सरेंडर करता है लेकिन वह खतरनाक बन चुका है वह नेताओं की नेताओं की नीतियों और रीतियों से अच्छी तरह से वाकिफ है इसलिए उसका एनकाउंटर कर दिया जाता है, विकास मुकाम तक पुहचने से पहले ही ढेर हो जाता है

विकास दुबे को मार दिया गया है… सही हुआ या गलत, बहस छोड़िए, लेकिन एक और घटिया स्क्रिप्ट सामने आई है। जब उसे मारना ही है, तो  डंके की चोट पर उड़ा दीजिए। झूठी और बकवास कहानी क्यों सुनाई जा रही हैं,जिस पर किसी को यकीन नही है।समझ आ रहा है,पुलिस ने मार दिया है। पहली कहानी में विकास  को सिक्योरिटी गार्ड पकड़ते हैं और दूसरी कहानी में वो पुलिस पर गोली चलाकर, दो किलोमीटर भागता है। क्रास फायरिंग होती है और उसे मारा जाता है

‘8 पुलिस वालों को मरबाने में सहयोग करने वाले पुलिस के सब इंस्पेक्टर तिवारी को ले जाते समय भी क्या कभी गाड़ी का टायर पिंचर होगा और फिर …..किसी को भी बिकास  जैसे अपराधी से हमदर्दी नही होगी उसने जो किया उसकी ये बहुत छोटी सजा है पर उसकी आड़ में आप बड़ी सफेद पोस मछलियों को बचा रहे हो तो लोग सबाल तो पूछेगे ही
धनंजय सिंह तकनीकी संपादक राष्ट्रीय जजमेंट मीडिया ग्रुप –

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