96 प्रतिशत मृत्युदर के साथ हेपेटाइटिस बी और सी दूसरी सबसे घातक बीमारी

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विश्व हेपेटाइटिस दिवस- 28 जुलाई 2020
थीमफाइंड द मिसिंग मिलियंस’
टीबी यानी ट्युबरक्युलोसिस की बीमारी के बाद हेपेटाइटिस दूसरी सबसे घातक बीमारी मानी जाती है। 96 प्रतिशत मृत्युदर के साथ, हेपेटाइटिस बी और सी की बीमारी दुनिया के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है। हैरान करने वाली बात तो यह है कि इसके 80 प्रतिशत मरीजों को पता ही नहीं है कि वे इस बीमारी से ग्रस्त हैं। चूंकि, शुरुआती चरणों में इसके कोई लक्षण नहीं नजर आते हैं, यह बीमारी अंदर ही अंदर गंभीर होती जाती है, इसलिए इसे साइलेंट किलर के नाम से जाना जाता है।
दुर्भाग्य से यह बीमारी एक से दूसरे में फैलती है और इलाज में देरी से परिणाम भी बेहतर नहीं मिलते हैं। हेपेटाइटिस बी भारत में सिरोसिस का दूसरा सबसे बड़ा कारण है (शराब के बाद)। यह भारत में लिवर कैंसर का मुख्य कारण बना हुआ है क्योंकि लिवर कैंसर के 40 प्रतिशत से अधिक मरीज हेपेटाइटिस बी से संबंधित हैं।
डब्ल्युएचओ द्वारा साझा किए गए हालिया आंकड़ों के अनुसार, 29 करोड़ से भी ज्यादा लोग हेपेटाइटिस की बीमारी से ग्रस्त हैं, लेकिन उन्हें इसके बारे में कोई खबर नहीं है। जागरुकता में कमी के कारण लोग जांच को महत्व नहीं देते हैं, जिसके कारण ऐसे मरीज अपनी जान गंवा बैठते हैं। लगभग 5 करोड़ भारतीय हेपेटाइटिस बी से ग्रस्त हैं और 1.2 करोड़ भारतीयों में हेपेटाइटिस सी की पहचान हुई है।
दिल्ली के पटपड़गंज स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी और हेपेटोलॉजी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार, डॉ. विभू विभास मित्तल ने बताया कि, “हालांकि, यह वायरल संक्रमण सभी को समान रूप से प्रभावित करता है, लेकिन जो लोग लिवर संबंधी बीमारियों, सिरोसिस या लिवर कैंसर का पारिवारिक इतिहास रखते हैं, आईवी ड्रग्स लेते हैं
यौन व्यवहार का उच्च जोखिम रखते हैं, बॉडी पियरसिंग कराते हैं या बहुत ज्यादा टैटू बनवाते हैं, उनमें हेपेटाइटिस बी और सी का खतरा ज्यादा है। इसके अलावा जिन लोगों को बार-बार पीलिया की शिकायत होती है, उन्हें भी समय-समय पर अपने लिवर की जांच कराते रहना चाहिए। हेपेटाइटिस बी उनमें भी ज्यादा है, जो एंटी कैंसरस या ऐसा इलाज करा रहे हैं, जिससे उनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है।”
विश्व हेपेटाइटिस दिवस के अवसर पर, लोगों को समय पर बीमारी की पहचान और इलाज के महत्व और उपलब्ध इलाजों के बारे में जागरुक किया जाता है। चूंकि, दोनो बीमारियों का इलाज संभव है, इसलिए पहले डॉक्टर दवाइयां लेने की सलाह देता है। शरीर पर इन दवाइयों का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। वर्तमान में, हेपेटाइटिस सी को एंटी-वायरल दवाइयों से ठीक किया जा सकता है। वहीं हेपेटाइटिस बी को भी दवाइयों की मदद से ठीक किया जा सकता है और साथ ही इसके कारण होने वाले लिवर डैमेज, लिवर फेलियर और लिवर कैंसर की रोकथाम भी संभव है।
डॉ. विभू विभास मित्तल ने आगे बताया कि, “2011 से भारत में टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा होने के नाते, हेपेटाइटिस बी के लिए एक प्रभावी टीका इसके निवारक के रूप में उपलब्ध है। यह टीका सभी नवजात शिशुओं को लगवाने की सलाह दी जाती है। यहां तक कि बड़े भी यह टीका लगवा सकते हैं
 डॉ विभु मित्तल                                                          
 
  Best Regards
  Umesh Kumar Singh                                                                                                                                                                                                                                                                    Manager 
  Sampreshan News Service                                                                                                    
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