महोबा : बुंदेलखंड मुफलिसों के मसीहा बने राजेन्द्र शिवहरे

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* गरीब बेटियों की शादी हो तो लोगों की जुबां पर एक ही नाम आता है शिवहरे
* लॉकडाउन में हर जरूरतमंद तक मदद पहुंचाकर पेश की समाज सेवा की मिशाल
* गरीब बेटियों का विवाह, बीमारों को दवा करा रहे उपलब्ध
मां-बाप से मिली प्रेरणा ने दी समाजसेवा की सीख
महोबा 8 दिसम्बर। गरीब बेटियों की शादी हो तो लोगों की जुबां पर सिर्फ एक ही नाम आता है राजेन्द्र शिवहरे। गरीबों और मुफलिसों के घरों में यदि कोई गमी होती है और उनके पास अंतिम क्रिया के लिये आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं हैं तो वह राजेन्द्र शिवहरे को ही याद करते हैं। समाज सेवा के प्रति जुनून और जज्बा राजेन्द्र शिवहरे के लिये एक मिशन बन गया है।
लॉकडाउन के इन चार महीनों में ऐसा कोई भी दिन खाली नहीं गया जब जरूरतमंदो ने राजेन्द्र शिवहरे को याद न किया हो। राजेन्द्र शिवहरे हर गरीब और जरूरतमंद उनके सगे सम्बंधियों से भी बढ़कर हैं। मां बाप ने बचपन में जो समाज सेवा के लिये राजेन्द्र शिवहरे को इंसानियत की सीख दी उस पर वह अमल करते आ रहे हैं।
कबरई के राजेन्द्र शिवहरे ने समाज सेवा के क्षेत्र में नयी मिशाल पेश की है। वैसे तो राजेन्द्र शिवहरे अपने युवा अवस्था से ही हर जरूरतमंदो की मदद करते आ रहे हैं लेकिन बुन्देलखण्ड के महोबा जिले में वह कठिन दौर भी देखा जब कोरोना महामारी के चलते सम्पूर्ण लॉकडाउन का ऐलान हुआ।
इस दौरान लॉकडाउन के पहले दिन से ही अनलॉक-3 तक उनके द्वारा गरीब, बेरोजगारो, की मदद करने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। बीमारों को दवा और भूखे को खाना मिल सके इसके लिये वह हमेशा आगे हैं। इतना ही नहीं प्रवासी मजदूरों को भी उनके द्वारा एक माह तक प्रति दिन नेशनल हाई-वे मार्ग पर भण्डारे का आयोजन कराकर उन्हें लंच पैकेट वितरित किये हैं।
इतना ही नही कोई भी पर्व हो वह अनाथालय व वृद्धाआश्रम में पहुंचकर मनाते है और यहां निवास करने वालों को वह अपने परिवार के सदस्यों की तरह ही स्नेह दे रहे है। जिला अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों व तीमारदारों को भी भोजन उपलब्ध कराते हैं।
मूल रूप से पत्थर मण्डी कबरई निवासी राजेन्द्र शिवहरे ने महोबा जिले में समाजसेवा की जो लकीर खींची है उसका कोई सानी नहीं है। राजेन्द्र शिवहरे बताते है कि समाजसेवा उनके लिये सबसे पहले है उनके माता पिता भी समाज सेवा का यह पुनीत कार्य करते रहे है बचपन में मां-बाप ने ही यह शिक्षा दी थी कि इनसानियत सबसे बड़ा धर्म है इनसानियत से बड़ी कोई चीज नहीं है।
तभी से उन्होंने समाज सेवा का बीड़ा उठाया। हर जरूरतमंदो की मदद के लिये वह महेशा से आगे रहे है। लॉकडाउन के दौरान जब उन्होंने देखा कि कबरई कस्बे ही नहीं जिला मुख्यालय व आस-पास के इलाकों में तमाम घर परिवार ऐसे है जहां दो वक्त के भोजन के लिये खाघ सामग्री नहीं है तभी उन्होंने ठान लिया था कि वह किसी भी गरीब को भूखा नहीं सोने देगें।
लॉकडाउन के पहले दिन से ही उन्होंने एक मिशन के तौर पर समाजसेवा के तौर पर लोगों के घरों तक खाघान्न पहुंचाने की जो मुहिम शुरू की वह अभी तक जारी है। इस दौरान घरों में खाघान्न पहुंचाते समय पता चला कि तमाम ऐसे परिवार भी है जिनके बेटियों की शादी तय हो चुकी लेकिन लॉकडाउन में शादी सम्पन्न कराने के लिये उनके पास पैसा नहीं है
तब उन्होंने ऐसे तकरीबन आधा दर्जन परिवारों की गरीब बेटियों की शादी अपने पैसों से कराने के साथ ही स्वयं कन्यादान किया तब यह बेटियां खुशी-खुशी अपने जीवन के नये सफर के लिये ससुराल रवाना हुयी।
इसके अलावा तमाम ऐसे परिवार भी मिले जो बीमारी से पीड़ित थे इलाज व दवा के लिये आर्थिक तंगी आड़े आ रही थी तब ऐसे परिवारों के मरीजों के लिये उन्होंने स्वयं अपने पैसों से दवा मंगाई उनके घर पहुंचायी और भरोसा दिया जब वह पूरी तरह से स्वस्थ्य नहीं हो जाते तब तक उनकी दवा का खर्चा वह उठायेगें।
लॉकडाउन के दौरान जब वह लोगों की घरों में खाघान्न मुहैया कराने के लिये पहुंच रहे थे तभी कई ऐसे लोग भी सामने आयें जिन्होंने बताया कि उनके घरो में गमी हो चुकी है, लेकिन तेरवीं करने के लिये पैसे नहीं है तब राजेन्द्र शिवहरे का दिल और भी ज्यादा पसीज उठा उन्होंने ऐसे परिवार के लोगों को मदद के लिये पूरा भरोसा दिया और अपनी ओर से तेरवीं कराकर समाजसेवा की जिले में मिशाल पेश की हैं।
वहीं जिले के आनाथालय में ऐसा कोई भी त्यौहार नहीं होता जब वह आनाथालय पहुंचकर इन अनाथ बच्चों के साथ मनाते न हों। बच्चों से उनका हाल, चाल पूंछने के साथ दीपावली व होली पर्व पर नये वस्त्र के साथ उनकी सभी आवश्यकताआें को पूरा करते चले आ रहे हैं।
इसके अलावा वृद्धाआश्रम में वह प्रत्येक पर्व पर पहुंचकर यहां निवास करने वाले वृद्धजनों से संवाद करते है और उनके साथ बैठकर परिवार के सदस्यो की तरह भोजन भी ग्रहण करते है। यही कार्यशैली समाजसेवी राजेन्द्र की जनपद के अलावा चित्रकूट मण्डल में अपनी पहचान बना चुकी है।
राष्ट्रीय जजमेंट के लिये महोबा से काजी आमिल की विशेष रिपोर्ट ।

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