लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ पता नहीं क्यों समाज में फैले भ्रष्टाचार की समीक्षा नहीं कर पा रहा है?

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परिंदो की उड़ानों को अभी कुछ आम होने दो..!
अभी सूरज नही डूबा अभी कुछ शाम होने दो..!
मुझे बदनाम करने का बहाना ढूंढते क्यों हो..!
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने दो..!!
लोकतन्त्र के स्वतन्त्र आवरण के बीच चौपाये के रूप में ख्याति प्राप्त पत्रकार सकार की उपेक्षा के चलते लगातार समाज में फैल रहे भरष्टाचार की समीक्षा नहीं कर पा रहा है। आशिक्षा, गरीबी, महामारी, अपराध और बिकृत होते समाज के सानिध्य में सभ्य समाज मर्माहत है! आहत है! जब भी माँ सरस्वती के बरद पुत्रों के साथ अन्याय, अत्याचार, दुराचार, दुर्ब्यवहार, किया गया है मानव समाज में दुर्दिन शुरू हुआ है।
इतिहास गवाह है दुनियाँ के दुर्दान्त तानाशाहो की हस्ती को भी मिटाने में कलम के सिपाहीयो की भूमिका सर्वोपरि रही है। आज के परिवेश में इस देश की ब्यवस्था में आस्था को प्रमुखता है! दासता की प्रथा को आधुनिकता की चासनी में ङूबोकर नौकरशाही में परिवर्तित कर दिया गया है!अफसर शाही, नादिरशाही के रास्ते पर चल रही है? हिटलर शाही सियासत में बाह बाही पा रही है! मुसोलीन की ब्यवस्था के तर्ज पर हुकूमत परवरिश पा रही है? ऐसे में इस समाज के सजग प्रहरी सरस्वती के मानस पुत्रों के साथ हो रहे दुराचरण के चलते बदलाव के बादल बसुन्धरा की बंजर होती धरती पर बरसने के लिये मचल रहे है!
कलम के पुजारी प्रतिदिन प्रतिपल पाखंङ के प्रभाव से प्रभावित दुराचारीयो के दुराचार से तथा भर्ष्टाचारीयो के कारण तबाह हो रही इस देश की बदलती ब्यवस्था में जान को जोखिम में ङालकर ज्वलन्त मुद्दो को उठा रहा है समाज मे फैली बुराई को आईना दिखा रहा है।अपना फर्ज बखूबी पूरा कर रहा है।, दुर्भाग्य के दो राहे पर खङी पत्रकारिता बिगङते परिवेश में प्रदुषित हो गयी है। कभी पत्रकारिता मिशन हुआ करता था! आज पत्रकारिता ब्यवसाय हो गया है।सच की ईबारत पर झूठ का पर्दा चढाया जाने लगा है! कभी पत्रकार स्वतन्त्र लेखक था! आज मालिक का गुलाम हो गया है!
मालिक की मर्जी के आगे फर्जी समाचार भी सदाबहार है! और् असलियत सहुलियत के साथ दबा दी जाती है!दलाली हलाली की ट्रेनिग भी अब इसी समाज से मिल रही है।न अब कलम मनमाफिक हिल रही है न सच की स्याही सही दिल से ईबारत लिख रही है। कभी पत्रकारिता का स्वरूप अकल्पनीय ,सराहनीय, बन्दनीय, हुआ करता था समाज का प्रबुद्ध बर्ग हर सुबह सच की परख समाचार पत्रों की तहरीर को पढकर किया करता था! लेकीन सब कुछ बदल गया! जमाना बदला लोग बदले पत्रकारिता भी बदल गयी।प्रीन्ट मिङीया धीरे धीरे अस्ताचल की तरफ जा रही है!
सोसल मिङीया इलेक्ट्रानिक मिङीया राहू केतु के तरह प्रीन्ट मिङीया पर ग्रहण बनकर हाबी है।बङे अखबार ब्यवसाय के हिसाब से समाचार लगाते है। उन अखबारों मे जो मालिक कहता वही पत्रकार लिखता है! वही समाज मे दिखता है।फिर भी सीमा पर वतन के सिपाही और देश के भीतर कलम के सिपाही आज भी अपने जान की कुर्बानी देकर अपने अपनी जिम्मेदारी जबाबदारी का उदाहरण रोज प्रस्तुत कर रहे है। बर्तमान सरकार मे पत्रकार असहाय लाचार बेकार बना दिया गया है! दर्जनो पत्रकारों की हत्या हो चुकी है!सैकङो पत्रकारो पर फर्जी मुकदमे कर दिये गये है!
कलम के तेवर को कम करने का सारे प्रयास जारी है ! फीर भी दिन रात समाज मे फैल रही कुरितियो तथा भरष्टाचार, अफसरशाही, लाल फीताशाही, तानाशाही के, खिलाफ आज भी बेखौफ लिख रहा सच्चा पत्रकार है! भले ही खुन्नस खाई हुयी सरकार है! “सच लिखना अगर बगावत है तो समझो हम भी बागी है” का नारा बुलन्द कर रहा है! यह भी सही है सियासत के खतरनाक खिलाङी अपनी कमियों को छिपाने के लिये पत्रकार समुदाय में ही बिभेद पैदा कर दियें है! लेकीन आने वाला वक्त सख्त निर्णय की भुमिका बनाता नजर आ रहा है।
जब सारी दुनियाँ कोरोना की महामारी में घरों मे कैद रही है भी पत्रकार सङक पर मौत से आमना सामना कर रहा है! तमाम पत्रकार इस महामारी की चपेट में आकर दुनियाँ छोङ चले! लेकीन सरकार के पास इनके लिये कुछ भी नही है! दो कदम इनके सहयोग में सरकार चलने को तैयार नहीँ है सुख सुबिधा की तो बात ही अलग है। हर तरफ अन्याय है! न्याय कहीं नहीँ है! सारे जँहा का दर्द हमारे जिगर में है!
कलम के पूजारी इसी फार्मूले पर जीवन के आखरी छण तक जिन्दगी के रण मे कलम को धार देने के प्रण के साथ आँखे बन्द करता है! लेकीन झुकता नहीं! बिकता नही!केवल सच लिखता है। ऐसा नही इस समाज मे अपवाद नही है!फीर भी बदलते समाज में आज भी पत्रकार अपने उद्देश्यों से पीछे नही हटता है! सरकारें आयेंगी जायेगी ! सियासत के वरासत में नफासत पैदा होती रहेगी! कोई नृप होहिं हमे का हानी? वालीबात हमेशा कायम रहेगी! पत्रकार समाज आज खतरनाक दौर से गुजर रहा है!
लोकतन्त्र के कायम ब्यवस्था में तानाशाही हाबी है?सरकार इसी को मान रही कामयाबी है! लेकीन नहीं पता सत्ता से बेदखल करने का पत्रकार बिरादरी के पास ही चाभी है! समय के समन्दर में बदलाव की सुनामी के आसार है! दिशाये गमगीन है! प्रकृति का बदला ब्यवहार है! आने वाला कल कायनाती पर्दे पर नयी फिल्म दिखाने के लिये हो रहा तैयार है।और इस घङी का बेसब्री से कर ,रहा इन्तजार पत्रकार है। दिल में जज्बात बहुत है! लिखने के लिये बात बहुत है! लेकी ब्यवस्था में समरसता कायम रहे !
अमनो अमान में सबका सम्मान रहे! दर्द मे ही सही सबका जिन्दा स्वाभिमान रहे! इस धरणी धरा पर सद्भावना के साथ मिल्लत की बुनियाद पर मानवीय सम्बेदनाओ को झंकृत करता गीता और कुरान रहे!सबका साथ सबका बिकाश का ढपोरशंखी वादा निभाता कराहता हिन्दुस्तान रहे! हम रहें न रहें इस देश का जिन्दा स्वाभिमान रहे! की दूरगामी सोच के साथ कलम का सिपाही सदियो से अपनी आजादी की बर्बादी का दंश झेलता रहा है!
खुश रहो ऐ अहले वतन हम तो सफर करते है का तराना गाते इस जहां को छोङ जाता है। अकथनीय अबुझ पहेली के साथ अतुलनीय लेखनी को वरासत मे आने वाली पीढी के लिये समर्पित कर इस अन्दाज में की जिन्दगी जिन्दा दिली का नाम है! मुर्दा लोग क्या खाक जिया करते है!
जय हिन्द ????
इजहार अहमद आगरा 

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