“ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया”- नहीं रहे ‘राहत इंदौरी’ साहब

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दिल में हिंदुस्तान और शायरी में इंसानियत लिए राहत इंदौरी आज रुखसत हो गए। आज सुबह ही उन्होंने खुद को कोरोना होने की खबर ट्विटर पर दी थी। 70 साल की उम्र में यह संक्रमण गंभीर मसला था। पर, राहत के किरदार से वाकिफ शायरों की बिरादरी को यकीन था कि इस बार कोरोना गलत आदमी से भिड़ गया है। लेकिन, होना कुछ और ही था। राहत को निमोनिया भी हो गया था और लगातार तीन हार्ट अटैक भी आए। इसके बाद शाम 5 बजे खबर आई कि रूह को राहत देने वाला ये शायर दुनिया से चला गया है।

मुफलिसी में गुजरा बचपन, परिवार को बेघर होना पड़ा था
1 जनवरी 1950.. वह दिन रविवार का था, जब रिफअत उल्लाह साहब के घर राहत साहब की पैदाइश हुई। इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक, ये 1369 हिजरी थी और तारीख 12 रबी उल अव्वल थी। राहत साहब के वालिद रिफअत उल्लाह 1942 में सोनकछ देवास जिले से इंदौर आए थे। राहत साहब का बचपन का नाम कामिल था। बाद में इनका नाम बदलकर राहत उल्लाह कर दिया गया।

राहत साहब का बचपन मुफलिसी में गुजरा। वालिद ने इंदौर आने के बाद ऑटो चलाया। मिल में काम किया। लेकिन उन दिनों आर्थिक मंदी का दौर चल रहा था। 1939 से 1945 तक दूसरे विश्वयुद्ध का भारत पर भी असर पड़ा। मिलें बंद हो गईं या वहां छंटनी करनी पड़ी। राहत साहब के वालिद की नौकरी भी चली गई। हालात इतने खराब हो गए कि राहत साहब के परिवार को बेघर होना पड़ गया था।

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