देश की आजादी में फर्रुखाबाद की भूमिका,, कुछ ऐतिहासिक बाते 

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आजादी के दीवानों की कहानी
फर्रुखाबाद। आज हम आपके सम्मुख आजादी से जुड़ा फर्रुखाबाद का कुछ इतिहास सामने लेकर आये है । बात उस समय की है जब देश को अंग्रेजो ने गुलामी की जंजीरों से जकड़ रखा था। बताते है कि  देश को स्वतंत्र कराने के लिये अमर शहीदों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए ,अपने प्राणों को  न्योछावर कर दिया था, तब जाकर कही हमें आजादी मिली ।
देश पूरी तरह से गुलामी में जी रहा था ।देश मे अंग्रेजी हुकूमत काम कर रही थी, दिन प्रतिदिन अंग्रेज भारतीयों पर  अत्याचार कर थे जो भी  जबाब तो देता वो बदले में मौत पाता ,वो दौर कैसा रहा होगा यह तो हमारे पूर्वज ही जानते होंगे ।  देश की आजादी में फर्रुखाबाद पाँचाल नगर  जैसे शहर की अहम भागीदारी रही है, जिसे  भुलाया नही जा सकता। इसीलिये आपको इस बात से भी अवगत कराना  बेहद जरूरी है ।  आपको बता दे कि हमारे जनपद से  लगभग ‘161’ स्वंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए  लड़ाई लड़ी और जेल गए,  जिनके नाम आपको शहर के नगर पालिका विश्राम गृह पर  फोटो के साथ देखने को मिलेंगे यही नही फर्रुखाबाद में अंग्रेजी शासन के दौरान  जिन लोगो को कालापानी की सजा दी गई थी उनकी भी फेहरिस्त बहुत लंबी है , अपने   जनपद का इतिहास इतना  लंबा है इसे जितना जानने का प्रयास करेंगे उतने तथ्य आपके सामने आएँगे ।
 जानकारों के अनुसार अंग्रेजी हुकूमत के समय   हमारे  जिले में  गंगा तट के किनारे  बहुत बड़ा बंदरगाह हुआ करता  था, जहां से  #अफीम और नील का कारोबार  पड़े पैमाने पर होता था  जो कि आज खण्डहर में तब्दील यह स्थान  विश्रातघाट के नाम से भी जाना जाता है। बताते है कि  बर्ष 1868 में अंग्रेजो ने टाउनहाल का निर्माण कराया था, वर्तमान समय मे नगर पालिका फर्रुखाबाद कार्यालय है। इसी टाउनहाल पर नबाब मोहम्मद खां बंगश का किला हुआ करता था। जिसे अंग्रेजो ने तोपो से उड़वा दिया था।  इसके बाद उन्होंने  शहर में विभिन्न इमारते बनबाई  बताते है कि अंग्रेजो ने जब देश को  गुलामी की जंजीरो में जकड़ा था तब देश मे  युवा बर्ग के अंदर क्रांतिकारी चेतना जाग्रत हो रही थी, भीतर ही भीतर यह युवा  आजादी की योजना साकार करने में लगे थे।अंग्रेजो  के बढ़ते अत्याचार  पूरे  मुल्क के असहनीय होता जा रहा था भारतीय अंग्रेजो  की प्रताड़ना बर्दाश्त नही कर  पा रहे  थे ।
तब देश मे आजादी का विगुल फूंका गया  जनपद में क्रांतिकारियों की टोलियां आने लगी क्रांतिकारी शहर के स्वराज कुटीर में रुकते थे। और शहर में विभिन्न जगहों पर गुपचुप सभाएं करते थे, अगर वो पकड़े जाते थे  घूमना नितगंजा दक्षिण की तरफ उन्हें  एक पेड़ से लटका कर फांसी दे दी जाती थी। जिसका उदाहरण घुमना का सुभाष गेट है ।यही नही   अंग्रेजो का न्यायालय  राजकीय विद्यालय  नई बस्ती इस्माइलगंजसानी में हुआ करता था, जहां कई शहीदों को फांसी दी गई। अंग्रेजो ने देश के क्रांतिकारियों  को क़ैद में रखने के लिये  सेंटर जेल बनबाई थी  जहां उन्हें रखा जाता था।  यही पर शहीद मणिन्द्र नाथ बनर्जी को जेल में रखा गया था। उनकी प्रतिमा आज भी इस बात की साक्षी है। देश की स्वतंत्रता में  अग्रणी भूमिका निभाने वाले  नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी मृत्यु के पूर्व अंतिम जनसभा फर्रुखाबाद  के पटेल पार्क 25 फरवरी बर्ष 1940  में संबोधित कर   आजादी का बिगुल फूंका  था । फर्रुखाबाद में अनगिनत  स्वतंत्रता सेनानी ऐसे भी  रहे जिनका नाम आज तक सामने नही आ पाया ।  जिले  में कुछ ऐसी  ऐतिहासिक इमारते है जो कि खण्डहर में  तब्दील हो गई है जिन्हें आज सजोने की जरूरत है ,यह हमारी विरासत  है।

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