जानिए किस कदर सेहत के लिए हानिकारक होता स्मॉग, लापरवाही बरतने पर हो जाते है ये भयंकर रोग

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स्मॉग से सिर्फ फेफड़ों और आंखों को ही नुकसान नहीं होता है, बल्कि इससे स्वस्थ लोगों में चिड़चिड़ेपन की समस्या भी बढ़ सकती है। विशेषज्ञ डॉक्टरों ने लखनऊ में छाए स्मॉग से सभी को बचने की सलाह दी है। उनका कहना है कि स्मॉग शरीर को कई तरह से नुकसान पहुंचाता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर डालने से लेकर नाक, कान और गले में भी समस्या बढ़ा सकता है। फिलहाल अस्पतालों में सांस व मानसिक रोगियों को दवाओं की डोज बढ़ानी पड़ रही है। डॉक्टरों की सलाह है कि स्मॉग में सांस के रोगी और उम्र दराज लोग सुबह टहलने से बचें। छोटे बच्चों को बाहर ज्यादा देर तक न छोड़ें। बाइक से निकलें तो चश्मा लगा लें।
स्मॉग में होते हैं खतरनाक रसायन
विशेषज्ञों का कहना है कि हवा के धीमा होने और नमी बढ़ने पर वायुमंडल में मौजूद प्रदूषण परत के रूप में छा जाता है। वायुमंडलीय प्रदूषण या गैसें हवा में मौजूद सूरज की रोशनी और वातावरण में इसकी गर्मी के साथ प्रतिक्रिया करती हैं, जिससे स्मॉग बनती है। यह धुंध और धुआं का मिश्रित स्वरूप है। इसमें सल्फर डाईऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड के बीच जटिल रासायनिक प्रतिक्रिया होती है।
बाइक पर निकलें तो चश्मा जरूर लगाएं
पीजीआई के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. वैभव जैन का कहना है कि स्मॉग से आंखों में जलन की समस्या बढ़ जाती है। बाइक पर बिना चश्मा पहने नहीं निकलना चाहिए।
आंखों में जलन हो तो साफ पानी से धुलें। आंखों में दो दिनों से लालिमा बनी हुई है और पानी आ रहा है तो
डॉक्टर को दिखाएं। 
आंख बार-बार नहीं रगडे़ं। मर्जी से ड्रॉप न डालें। गलत आई ड्रॉप से ग्लूकोमा होने का डर रहता है।
स्मॉग में मौजूद तत्व दिखाई नहीं देते, पर 2.5 माइक्रोमीटर से छोटे कण सांस के साथ फेफड़ों में घुसते हैं। हृदय को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. अजय कुमार वर्मा का कहना है कि मास्क लगाने से कोरोना के साथ ही स्मॉग से भी राहत मिलेगी।
बाहर खेले जाने वाले बच्चों में अस्थमा और सांस संबंधी अन्य समस्याएं होने की आशंका रहती है। नवजात को खुले आसमान में लिटाने से बचें।
कार्बन मोनोऑक्साइड, लेड से बढ़ेगा चिड़चिड़ापन 
मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. शाश्वत सक्सेना का कहना है कि स्मॉग दो तरह से असर डालता है। एक तत्काल और दूसरे का असर लंबे समय बाद दिखता है। स्मॉग में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, लेड और मरकरी सामान्य लोगों में चिड़चिड़ापन और भूलने की समस्या बढ़ाती है। इससे उनका अवसाद बढ़ने लगता है।
यही वजह है कि जिस वक्त स्मॉग रहता है, उस समय सड़क पर वाहन चलाते वक्त लोगों में छोटी-छोटी बातों पर ही चिड़चिड़ापन दिख जाता है। जिन लोगों में अभी किसी तरह की बीमारी नहीं है, वे स्मॉग में मौजूद विषैले तत्व की वजह से कुछ साल बाद अस्थमा और सांस से जुड़ी अन्य बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं। ओपीडी में इन दिनों जो पुराने मरीज आ रहे हैं उन्हें दवाओं की डोज बढ़ा कर देनी पड़ रही है।
इन समस्याओं का भी होता है खतरा
– चमड़ी पर खुरदुरापन, बाल झड़ना।
– घबराहट, नींद न आना, दिल से जुड़ी बीमारियों का बढ़ना।
– रक्तचाप और स्ट्रोक का खतरा।
– सांस फूलना, खांसी आना, ब्रोंकाइटिस का खतरा।
– रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना।
– आंख, कान, नाक, गला से जुड़ी बीमारियां।
ये है बचाव का तरीका
– बहुत जरूरी हो तभी बाहर निकलें।
– मास्क नियमित पहनें।
– खानपान दुरुस्त रखें। तरल पदार्थ का सेवन ज्यादा करें।
– फेफड़े के लिए अनुलोम, विलोम करें। घर में ही एक्सरसाइज करें।

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