आरबीआइ बोर्ड की बैठक, सरकार धारा-7 लगाने की तैयारी में

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नई दिल्ली,। बैठक तय करेगा कि आरबीआइ गवर्नर एनपीए नियम, केंद्रीय बैंक के फंड के इस्तेमाल या छोटे उद्योगों को ज्यादा कर्ज उपलब्ध कराने के मुद्दे पर सरकार के सुझाव के आगे झुकते हैं या इस्तीफा देने का रास्ता अख्तियार करते हैं।
वैसे दोनों तरफ से इस बात के संकेत दिए गए हैं कि कुछ मुद्दों पर बीच की राह निकालने पर सहमति बन सकती है। लेकिन बहुत कुछ बैठक के दौरान बोर्ड के सदस्यों के रवैया पर निर्भर करेगा।
सोमवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की बोर्ड बैठक को लेकर यह तय करेगा कि आने वाले दिनों में सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच किस तरह से रिश्ते कायम होते हैं।
उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक जिन मुद्दों पर दोनो पक्षों के बीच पेंच फंस सकता है वह है केंद्रीय बैंक के रिजर्व फंड के इस्तेमाल का। अभी इस फंड का आकार 9.5 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा है।
पिछली दो बैठकों में सरकार के प्रतिनिधियों ने इसके एक हिस्से के इस्तेमाल का प्रस्ताव किया था जिसका आरबीआइ गवर्नर की तरफ से कड़ा विरोध किया गया था।
सरकार का कहना है कि दुनिया के दूसरे केंद्रीय बैंक कुल परिसंपत्तियों का 16-18 फीसद रिजर्व में रखते हैं जबकि आरबीआइ 26 फीसद रखता है। आरबीआइ इसका एक हिस्सा केंद्र को दे सकता है जिसका इस्तेमाल ढांचागत सुविधाओं के विकास में किया जा सकता है।
लेकिन आरबीआइ का तर्क है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना अमेरिका, जापान, चीन से नहीं की जा सकती। यहां के बैंकिंग सिस्टम का बुनियादी ढांचा अभी भी बेहद मजबूत नहीं है।
ऐसे में आरबीआइ के पास बड़ा रिजर्व फंड होना चाहिए जिसका इस्तेमाल वित्तीय संकट के काल में किया जा सके। सोमवार को हो सकता है इसका फैसला करने के लिए एक समिति गठित कर दी जाए।
उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक आरबीआइ बोर्ड में सरकार के प्रतिनिधि करने वाले सदस्य निश्चित तौर पर उन मुद्दों को जोरदार तरीके से उठाएंगे जिन्हें अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार देने के लिए फिलहाल बेहद जरुरी माना जा रहा है।
लेकिन आरबीआइ के गवर्नर या बोर्ड के दूसरे सदस्यों के विचारों को भी पूरा सम्मान मिलेगा। हां, लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर सरकार बिल्कुल अहम मानती है
मसलन, लघु व मझोले उद्योगों को एनपीए के बेहद कड़े नियमों से थोड़ी राहत देना और वित्तीय सिस्टम में ज्यादा तरलता (कर्ज देने के लिए फंड) देना।
आरबीआइ के 18 सदस्यीय बोर्ड में सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग और वित्तीय सेवा विभाग के सचिव राजीव कुमार है।
सरकार का पक्ष रखने में इनका साथ देंगे वित्त मंत्रालय की तरफ से नामित एस गुरुमूर्ति जिन्होंने तीन दिन पहले ही आरबीआइ की नीतियों की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी।
दूसरी तरफ होंगे आरबीआइ के गवर्नर उर्जित पटेल और उनके चारों डिप्टी गवर्नर। इसके अलावा बोर्ड में शामिल कई दूसरे ऐसे सदस्य हैं जो पटेल व उनकी टीम के साथ होंगे।
वित्त मंत्रालय इस बैठक को लेकर कितना गंभीर है। चुनावी वर्ष में सरकार बिल्कुल नहीं चाहती कि छोटे व मझोले उद्योगों को कर्ज मिलने में कोई परेशानी हो।
दूसरी तरफ अभी बैंकिंग व्यवस्था में फंड की किल्लत होने से छोटे व मझोले उद्योगों के साथ ही हाउसिंग, आटो लोन में भी दिक्कत हो रही है।
11 बैंकों पर आरबीआइ की तरफ से प्रोम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) के तहत पाबंदी लगी है जिससे वह कर्ज नही बांट पा रहे हैं। इससे भी देश के बड़े हिस्से में पर्याप्त कर्ज नहीं मिल रहा है।
वित्त मंत्रालय ने कानून मंत्रालय से मशविरा कर रखा है कि अगर आरबीआइ के शीर्ष लोगों की राय नहीं बदलती है तो वह आरबीआइ एक्ट की धारा-7 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है।
इसके तहत वह आरबीआइ को कुछ फैसला करने का निर्देश दे सकता है। इस धारा का इस्तेमाल पहले कभी नही हुआ है।
जानकारों का कहना है कि अगर सरकार की तरफ से ऐसा कदम उठाया जाता है तो
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आरबीआइ गवर्नर पटेल के सामने अपने पद से इस्तीफा देने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा।

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