बाबरी विध्‍वंस की बरसी पर पत्रकार ने किया दावा- मेरे कपड़े फाड़ द‍िए गए थे और आडवाणी ने कहा था- जो हुआ उसे भूल जाओ, म‍िठाई खाओ

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अयोध्‍या पहुंचकर घटना को कवर करने वाले रिपोर्टरों में रुचिरा गुप्‍ता भी एक थीं। घटना के 26 साल बाद आज वह एक स्‍वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर सक्रिय हैं। न्‍यूज एजेंसी ‘आईएएनएस’ ने वर्ष 2017 में एक खबर दी थी, जिसके मुताबिक बाबरी मस्जिद विध्‍वंस के वक्‍त रुचिरा ‘बिजनेस इंडिया’ में बतौर विशेष संवाददाता कार्यरत थीं।
रुचिरा बताती हैं कि जब वह बाबरी मस्जिद के अंदर गईं तो उस वक्‍त उसे तोड़ा जा रहा था। उन्‍होंने कहा, ‘बाबरी मस्जिद भगवा कपड़ा पहने कारसेवकों से भरी हुई थी। कुछ लोगों ने मुस्लिम समझ कर मेरा गला दबाने की कोशिश की थी। कुछ लोगों ने मेरे साथ छेड़खानी भी की थी। मेरे कपड़े तक फाड़ डाले थे। इस बीच, एक शख्‍स ने मुझे पहचान लिया और हमलावर लोगों से मुझे बचाया था।
मैंने बाबरी मस्जिद विध्‍वंस से एक दिन पहले उस शख्‍स का इंटरव्‍यू लिया था।’ रुचिरा ने आगे बताया था कि लालकृष्‍ण आडवाणी उस वक्‍त मस्जिद के छत पर थे। उन्‍होंने कहा, ‘मैंने आडवाणी से कहा था कि वह लोगों को पत्रकारों पर हमला करने से रोकें। इस पर आडवाणी ने मुझसे कहा था- अपने साथ जो हुआ उसे भूल जाओ। इतना ऐतिहासिक दिन है उसकी खुशी में कुछ मीठा खाओ।’
अयोध्‍या स्थित बाबरी मस्जिद को कारसेवकों के हुजूम ने 6 दिसंबर, 1992 में ढहा दिया था। विध्‍वंस की इस घटना को कई पत्रकारों ने तमाम कठिनाइयों के बावजूद घटनास्‍थल पर जाकर कवर किया था। मौके पर पहुंचीं महिला पत्रकारों को ज्‍यादा विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था।

बीबीसी के तत्‍कालीन ब्‍यूरा चीफ मार्क टुली ने वर्ष 1992 की घटना को याद करते हुए बताया कि जब बाबरी मस्जिद को ढहाया जा रहा था, तब अयोध्‍या में सरकार का नामोनिशान तक नहीं था। उन्‍होंने कहा, ‘सबसे शर्मनाक बात यह थी कि प्रशासनिक तंत्र और सरकार पूरी तरह से चरमरा गई थी। उस दिन अयोध्‍या में सरकार थी ही नहीं।
सुरक्षाबल आसपास के इलाकों में डटे थे, लेकिन रोकने की कोशिश नहीं की थी। सबकुछ कारसेवकों के नियंत्रण में था। मुसलमानों के खिलाफ नारेबाजी की जा रही थी।’ ‘इंडियन एक्‍सप्रेस’ से जुड़े फोटो पत्रकार प्रवीण जैन बाबरी विध्‍वंस के वक्‍त ‘द पायनियर’ अखबार के लिए काम कर रहे थे।

उन्‍होंने बताया कि मस्जिद को गिराने से पहले 5 दिसंबर, 1992 को बकायदा इसका अभ्‍यास किया गया था। प्रवीण के मुताबिक, जब वह मस्जिद के समीप पहुंचे थे तो उन्‍हें भाजपा के एक तत्‍कालीन सांसद ने भगवा पट्टा और विश्‍व हिन्‍दू परिषद का पहचानपत्र दिया था।
6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद को गिराने के बाद देशभर में सांप्रदायिक तनाव फैल गया था। कई राज्‍यों की बीजेपी सरकार को बर्खास्‍त कर दिया गया था। अब विवादित जमीन पर मालिकाना हक का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है।
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पिछली सुनवाई में कोर्ट ने मामले की सुनवाई को अगले साल के लिए टाल दिया था। फिलहाल विवादित जमीन पर भव्‍य राम मंदिर के निर्माण की मांग ने एकबार फिर से जोर पकड़ लिया है। नरेंद्र मोदी सरकार पर मंदिर निर्माण के लिए अध्‍यादेश लाने की मांग की जा रही है।

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