स्कूल बैग के कारण, बैक पेन और स्पाइन से जुड़ी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं 30% स्कूली बच्चे

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जालंधर। भारी बैग्स के कारण लगभग तीस फीसदी बच्चों में बैक पेन और स्पाइन से जुड़ी बीमारियों की शिकायतें बढ़ रही हैं। परेशानी से अनजान पैरेंट्स को भी इस बात की खबर नहीं है।
रियलिटी चेक में पता चला कि जितनी छोटी क्लास है, बच्चों पर स्कूल बैग्स का उतना ही ज्यादा बोझ है।
छोटे-छोटे कंधे और उन पर लदे भारी-भरकम स्कूल बैग…ऐसी हालत ज्यादातर बच्चों की है, जो जरूरत से ज्यादा भारी बैग उठाकर स्कूल जाते हैं।
हालांकि सरकार ने स्कूल बैग्स का भार तय कर दिया है, बावजूद इसके बच्चे लिमिट से ज्यादा भारी बैग ढोने को मजबूर हैं।
क्लास
1-2
3-4
5-8
8-9
10वीं
बस्ते का वजन (किलो में)
1 से 1.5
2-3
4
4.5
5
सीबीएसई ने 2004, 2007, 2016 और अगस्त 2018 में बैग का भार कम करने के निर्देश दिए गए थे। यहां तक कि पहली और दूसरी क्लास के बच्चों को बैग न लाने के भी आदेश थे।
लेकिन कुछ स्कूलों को छोड़कर शहर के स्कूल आदेशों का पालन नहीं कर रहे। पहली क्लास के बच्चे चार किलो, दूसरी क्लास के बच्चे पांच-पांच किलो तक का बैग लेकर स्कूल जा रहे हैं।
यूटी सरकारों ने बैग लिमिट तय की थी तो पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड ने कहा था कि वे 10 दिन में कमेटी बनाकर निर्देश जारी करेंगे। 10 दिन बीत चुके हैं, लेकिन कोई ऑर्डर जारी नहीं किया।
अपने वजन के 15 फीसदी भार जितना स्कूल बैग इस्तेमाल कर सकते हैं बच्चे। उससे ज्यादा सेहत के लिए हानिकारक होता है।
शोल्डर बैग की जगह बच्चे के लिए डबल स्ट्रैप वाला बैकपैक खरीदें, जिसके पीछे सपोर्टिव कुशन रहते हैं।
बैकपैक हल्का खरीदें और वह ऐसा हो, जो बच्चे की कमर से चार इंच से ज्यादा नीचे न जाए।
फैशन और ग्लैमर को तरजीह देने की बजाय अपने बच्चे के कम्फर्ट के हिसाब से ही बैकपैक सलेक्ट करें और खरीदें।
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अगर बच्चे को स्कूल में सीढ़ियों का इस्तेमाल नहीं करना तो ही उन्हें ट्रॉली बैग खरीदकर दें, क्योंकि ट्रॉली बैग बैकपैक से ज्यादा भारी होते हैं।

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