आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने कार्यकाल पूरा होने से पहले दिया इस्तीफा

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मुंबई। पिछले कुछ महीनों से सरकार और आरबीआई के बीच कई मुद्दों पर विवाद चल रहा था। सरकार ने आरबीआई एक्ट की धारा 7 का भी इस्तेमाल किया था। लेकिन, बाद में विवाद सुलझने की खबर आई।
19 नवंबर को आरबीआई की बोर्ड बैठक में विवाद के कुछ मुद्दों पर सहमति भी बन गई थी। इसके बाद यह आशंका खत्म हो गई कि उर्जित पटेल इस्तीफा देंगे। लेकिन, सोमवार को अचानक उन्होंने इस्तीफे का ऐलान कर दिया।
उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के इस्तीफे की भी खबरें आईं।
हालांकि, आरबीआई ने इन अफवाहों को खारिज कर दिया और कहा कि डिप्टी गवर्नर ने इस्तीफा नहीं दिया।
उर्जित के साथ अनुभव अच्छा रहा: मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उर्जित पटेल के कार्यकाल की तारीफ करते हुए कहा है कि उनके नेतृत्व में आरबीआई ने अच्छा काम किया था।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उर्जित पटेल को भविष्य के लिए शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि उनके साथ काम का अनुभव अच्छा रहा।
आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड के सदस्य एस गुरुमूर्ति ने उर्जित पटेल के इस्तीफे को चौंकाने वाला बताया है। उनका कहना है कि पिछली बैठक काफी अच्छे माहौल में हुई थी। ऐसे में पटेल का इस्तीफा झटके की तरह है।
पटेल के इस्तीफे पर पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि आरबीआई में जो चल रहा है उस पर सभी भारतीयों को चिंता करनी चाहिए।
राजन ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में महंगाई दर में कमी का श्रेय आरबीआई को मिलना चाहिए। सरकार को केंद्रीय बैंक की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए।
उर्जित पटेल के इस्तीफे पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि मोदी सरकार केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता पर हमला कर रही है। पटेल का इस्तीफा उसीका नतीजा है।
देश को भरोसेमंद सरकार की जरूरत है जो झूठा प्रचार ना करे बल्कि संवैधानिक मूल्यों का पालन करे।
कॉरपोरेट इतिहासकार प्रकाश बियाणी का कहना है कि उर्जित पटेल भी रघुराम राजन की तरह अधूरी पारी छोडकर पलायन कर गए। उन्होंने रिजर्व बैंक का गर्वनर पद छोड़ते हुए कहा है कि यह सम्मानजनक ओहदा था। मैं व्यक्तिगत कारणों से इस्तीफा दे रहा हूं।
यह कथन औपचारिकता है। हम सब जानते हैं कि इतने महत्वपूर्ण पद से किसी व्यक्ति को हटाना होता तो कहा जाता है कि वे खुद त्यागपत्र दे दें। उर्जित पटेल के साथ भी यही हुआ है।
4 सितंबर 2016 को उर्जित पटेल आरबीआई गवर्नर का पद संभाला था। उनका कार्यकाल सितंबर 2019 तक था। लेकिन, उन्होंने 9 महीने पहले ही इस्तीफा दे दिया। पटेल ने कहा- मैं निजी कारणों की वजह से आरबीआई गवर्नर पद से इस्तीफा दे रहा हूं।
यह तुरंत प्रभाव से लागू माना जाए। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ करना मेरे लिए सम्मान की बात है। मैं रिजर्व बैंक में अपने सभी साथियों और बोर्ड डायरेक्टर्स का शुक्रिया अदा करता हूं और उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
सरकार ने सितंबर महीने में पहली बार आरबीआई एक्ट की धारा 7 का इस्तेमाल किया था। धारा 7 के तहत सरकार आरबीआई से सलाह-मशविरा कर सकती है और उसे निर्देश भी दे सकती है। सलाह-मशविरे के तौर पर सरकार ने तीन पत्र रिजर्व बैंक को भेजे थे।
धारा 7 के तहत आरबीआई को निर्देश देने के अधिकार का आजाद भारत में आज तक कभी इस्तेमाल नहीं किया गया। लेकिन माना जा रहा था कि धारा 7 का एक हिस्सा प्रभावी करने की वजह से उर्जित पटेल कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं।
  • आरबीआई ने प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) की रूपरेखा के तहत कुछ नियम तय किए थे। यही सरकार और आरबीआई गवर्नर के बीच विवाद का सबसे बड़ा मुद्दा था। रिजर्व बैंक ने 12 बैंकों को त्वरित कारवाई की श्रेणी में डाला। ये नया कर्ज नहीं दे सकते, नई ब्रांच नहीं खोल सकते और ना ही डिविडेंड दे सकते हैं।
  • सरकार पीसीए नियमों में ढील चाहती है ताकि कर्ज देना बढ़ सके। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा था कि बैंकों की बैलेंस शीट और ना बिगड़े, इसलिए रोक जरूरी है।
  • अंतर-मंत्रालय समिति ने अलग पेमेंट-सेटलमेंट रेगुलेटर की सिफारिश की। रिजर्व बैंक इसके खिलाफ था। उसका अभी भी यही कहना है कि यह आरबीआई के अधीन हो। इसका प्रमुख आरबीआई गवर्नर ही हो।
  • एनपीए और विल्फुल डिफॉल्टरों पर अंकुश लगाने के लिए आरबीआई ने 12 फरवरी को नियम बदले। कर्ज लौटाने में एक दिन की भी देरी हुई तो डिफॉल्ट मानकर रिजॉल्यूशन प्रक्रिया शुरू करनी पड़गी। सरकार ने इसमें ढील देने का आग्रह किया, लेकिन आरबीआई नहीं माना।
  • नीरव मोदी का पीएनबी फ्रॉड सामने आने के बाद सरकार ने रिजर्व बैंक की निगरानी की आलोचना की तो आरबीआई गवर्नर ने ज्यादा अधिकार मांगे ताकि सरकारी बैंकों के खिलाफ कारवाई की जा सके।
  • सरकार रिजर्व बैंक से ज्यादा डिविडेंड चाहती है ताकि अपना घाटा कम कर सके। आरबीआई का कहना है कि सरकार इसकी स्वायत्तता को कम कर रही है। अभी इसकी बैलेंस शीट मजबूत बनाने की जरूरत है।
अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ने मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान आरबीआई की स्वायत्तता का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि जो सरकार केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती, उसे आर्थिक मोर्चे पर नुकसान उठाना पड़ता है।
आचार्य के बयान के बाद आरबीआई और सरकार के बीच विवाद खुलकर सामने आ गया था। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कुछ दिन बाद कहा कि सरकार भी आरबीआई की स्वायत्तता का सम्मान करती है लेकिन, उसे जनहित का ध्यान रखना चाहिए।
आरबीआई एक्ट के मुताबिक केंद्रीय बैंक के गवर्नर या डिप्टी गवर्नर इस्तीफे या छुट्टी पर होने की स्थिति में सरकार आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर दूसरे व्यक्ति को नियुक्त कर सकती है। आरबीआई में फिलहाल चार डिप्टी गवर्नर हैं।
इनमें एन एस विश्वनाथन, विरल आचार्य, बीपी कानूनगो और एम के जैन शामिल हैं। साथ ही 12 एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी आरबीआई के बोर्ड में शामिल हैं।
दो साल में यह ऐसा दूसरा मौका है जब आरबीआई गवर्नर ने सरकार से विवाद के बाद पद छोड़ा है। इससे पहले रघुराम राजन ने जून 2016 में गवर्नर पद छोड़ने की घोषणा की थी।
हालांकि, उन्होंने सितंबर 2016 में कार्यकाल पूरा होने पर पद छोड़ा था। मोदी सरकार और रघुराम राजन के बीच ब्याज दरों और राजन के बयानों को लेकर अनबन रही थी।
साल 2008 से 2012 के दौरान यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम और तत्कालीन आरबीआई गर्वनर डी सुब्बाराव के बीच भी विवाद सामने आया थे। दोनों के बीच ब्याज दरों और कर्ज को लेकर मतभेद थे।
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2004 से 2008 के दौरान पी चिदंबरम और तत्कालीन आरबीआई गवर्नर वाई वी रेड्डी के बीच विदेशी निवेशकों पर टैक्स, ब्याज दरों और निजी बैंकों में एफडीआई के मुद्दे को लेकर विवाद हुआ था।

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