रायपुर। राज्य में कांग्रेस ने चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री के लिए चेहरा घोषित नहीं किया था। इस पर तंज कसते हुए भाजपा ने कांग्रेस को बिना दूल्हे की बारात कहा था। अब जनता ने अपना जनादेश सुना दिया है।
एेसे में अब राज्य में मुख्यमंत्री किसे बनाया जाएगा, इसे लेकर कयासबाजी शुरू हो गई है। राज्य में कांग्रेस के पास तीन बड़े चेहरे हैं।
पीसीसी चीफ भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव और वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री चरण दास महंत। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री का ताज इन्हीं में से किसी के सिर पर सजेगा।
टीएस सिंहदेव:
इनका पूरा नाम त्रिभुवनेश्वर शरण सिंह देव है। टीएस सिंह देव फिलहाल छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं।
सरगुजा रियासत के पूर्व राजा टीएस सिंहदेव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत साल 1983 में अंबिकापुर नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष चुने जाने के साथ हुई। वह 10 साल तक इस पद पर बने रहे।
साल 2008 में टीएस सिंह देव ने पहली बार सरगुजा की अंबिकापुर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा। उन्होंने भाजपा के अनुराग सिंह देव को 948 वोटों से शिकस्त दी।
इसके बाद 2013 के चुनाव में फिर अनुराग सिंह देव को 19 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। 6 जनवरी 2014 को टीएस सिंह देव छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता विपक्ष चुने गए। टीएस सिंह देव 2008 से अंबिकापुर विधानसभा सीट से चुनाव जीतते आ रहे हैं।
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राजघराने से होने के बावजूद सौम्य चेहरा, सरल स्वभाव और उदार व्यवहार।
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नेता प्रतिपक्ष रहे और मिथकों को तोड़ा। बुरे समय में पार्टी आलाकमान के भरोसेमंद।
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विभिन्न मुद्दों पर हर बार उनके नेतृत्व में विधानसभा में सरकार को घेरती रही कांग्रेस।
भूपेश बघेल:
इस कड़ी में दूसरा नाम कांग्रेस प्रदेश कमेटी के प्रमुख भूपेश बघेल का है। अपने तेवरों से छत्तीसगढ़ की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान बनाने वाले राजनेताओं में शुमार बघेल का नाता विवादों से भी कम नहीं रहा है।
सीडी कांड की वजह से भूपेश बघेल सुर्खियों में रहे हैं। इसके चलते उन्हें जेल जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने जमानत लेने से इनकार कर दिया था। बघेल कुर्मी जाति से आते हैं।
बघेल ने राजनीति में अपनी पारी की शुरुआत यूथ कांग्रेस के साथ की। दुर्ग जिले के रहने वाले भूपेश यहां के यूथ कांग्रेस अध्यक्ष बने। वे 1990 से 94 तक जिला युवक कांग्रेस कमेटी, दुर्ग (ग्रामीण) के अध्यक्ष रहे।
भूपेश बघेल वह छत्तीसगढ़ मनवा कुर्मी समाज के 1996 से संरक्षक हैं। मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड के 1993 से 2001 तक निदेशक भी रहे हैं। 2000 में जब छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना तो वह पाटन सीट से विधानसभा पहुंचे।
इस दौरान वह कैबिनेट मंत्री भी बने। 2003 में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने पर भूपेश को विपक्ष का उपनेता बनाया गया। अक्तूबर 2014 में उन्हें छत्तीसगढ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया और वे तब से इस पद पर हैं।
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अध्यक्ष पद की कमान संभालने के बाद से कांग्रेस संगठन को मजबूत किया।
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जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में संघर्ष की क्षमता बढ़ाई, राहुल गांधी का भरोसा।
चरण दास महंत:
पूर्व केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत भी सीएम की रेस में हैं। महंत का राजनीतिक जीवन मध्य प्रदेश विधानसभा के साथ शुरू हुआ। वह 1980 से 1990 तक दो कार्यकाल के लिए विधानसभा सदस्य रहे। 1993 से 1998 के बीच वह मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री रहे।
1998 में वह 12वीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1999 में उनकी कामयाबी का सफर जारी रहा और वह 13वीं लोकसभा के लिए भी चुने गए।
महंत 2006 से 2008 तक छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। इसके बाद 2009 में वह 15वीं लोकसभा के लिए भी चुने गए। महंत मनमोहन सिंह सरकार में राज्य मंत्री, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय का पदभार संभाला।
2009 में वह संसद सदस्यों के वेतन और भत्ते पर बनी संयुक्त समिति के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में कोरबा सीट पर उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस ने इस बार उन्हें सक्ति विधानसभा सीट से प्रत्याशी के तौर पर उतारा है।
जब चरणदास महंत बोले,’सोनिया कहेंगी तो पोछा भी लगाऊंगा मैं’
पार्टी आलाकमान के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लिए महंत ने यहां तक कह दिया था कि अगर सोनिया गांधी कहेंगी तो वह पोछा लगाने को भी तैयार हैं।
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उस समय महंत न सिर्फ छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष थे, बल्कि केंद्र की मनमोहन सरकार में खाद्य एवं प्रसंस्करण राज्यमंत्री भी थे।
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पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री, दिल्ली में अच्छी पकड़ और आलाकमान तक पहुंच।
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केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा, भूपेश बघेल के विवाद में आने के बाद पार्टी ने महंत को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाकर उनके समकक्ष खड़ा किया।